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________________ भिक्षु ने धर्म की संपूर्ण परिभाषा ही त्याग पर आधृत कर दी । हिन्दुस्तान में अनेक धर्माचार्य और विचारक हुए हैं । उन्होंने अपने-अपने चिन्तन के अनुसार धर्म की परिभाषा दी । किन्तु आचार्य भिक्षु ने धर्म की जो परिभाषा दी है, वह इतनी सरल है कि उसमें किसी तरह की दार्शनिक उलझन है ही नहीं । धर्म की वह निर्विवाद परिभाषा है- त्याग धर्म, भोग अधर्म । इस परिभाषा से किसे आपत्ति हो सकती है ? समस्या है संग्रह की वृत्ति आवश्यकता एक बात है, किन्तु आवश्यकता से कई गुना अधिक संग्रह करना बिल्कुल दूसरी बात है । जरूरत है दो धोती और दो कुर्ते की, किन्तु एक दर्जन से कम में काम ही नहीं चलता | साड़ियों का तो कहना ही क्या ? पच्चीस-तीस साड़ियां तो आजकी महिलाओं के लिए सामान्य-सी बात है। कुछ वर्ष पूर्व एक छोटे से साम्यवादी देश में क्रान्ति हो गई। शासक को अपदस्थ कर दिया गया। उसकी पत्नी के प्रसाधनकक्ष से बेसुमार विलासिता की वस्तुएं बरामद हुई । उनमें सिर्फ पैरों की जूतियों की संख्या ही इतनी थी कि वह रोज एक नई जोड़ी पहनती है तो भी साल भर पहनने के बाद कुछ बच जातीं । उस शासक ने इतना इकट्ठा कर रखा था, जिसके सामने मुगलों की कई पीढ़ियों का वैभव भी तुच्छ था । यहां तक कि उसके जूतों में भी हीरे जड़े हुए थे । यह एक साम्यवादी देश के शासक की स्थिति है | ____ मनुष्य का ऐसा विचित्र स्वभाव या वृत्ति है संग्रह करने की। इस व्यामोह की स्थिति में अध्यात्म चेतना को जगाने के लिए छह आवश्यकताओं का प्रतिपादन किया गया । उनमें अन्तिम आवश्यकता है प्रत्याख्यान । इसका ठीक मूल्य आंका जाए तो व्यक्तिगत समस्या का सामाधान होगा, सामाजिक और राष्ट्रीय समस्या का समाधान भी हो पाएगा । १८२ जैन धर्म के साधना सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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