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________________ अनुभव करें - पैर से सिर तक चैतन्य पूरी तरह से जागृत हो गया है ।... प्रत्येक अवयव में प्राण का अनुभव करें । तीन दीर्घश्वास के साथ कायोत्सर्ग संपन्न करें । दीर्घ श्वास के साथ प्रत्येक अवयव में सक्रियता का अनुभव करें । साधना का प्रवेश द्वार कायोत्सर्ग का सबसे महत्वपूर्ण अंग है ममत्व का विसर्जन । ममत्व का आदि बिन्दु है शरीर । शरीर के प्रति होने वाला ममत्व पदार्थ के ममत्व को जन्म देता है । इस ममत्व की छाया में चैतन्य गौण और पदार्थ मुख्य बन रहा है । साधना का उद्देश्य है- आत्मा के वीर्य, पराक्रम और पौरुष को जागृत करना, उसकी दिव्य शक्तियों का उपयोग करना । ममत्य की सघनता में ऐसा संभव नहीं होता । साधक के लिए आवश्यक है ममत्व विसर्जन अथवा भेदविज्ञान का अभ्यास । कायोत्सर्ग में शिथिलता की स्थिति निर्मित होती है । उस अवस्था में शरीर और आत्मा के भेद की अनुभूति की जा सकती है । सुझाव और स्वतः - सूचना के प्रयोग भी इस अवस्था में अधिक सफल होते हैं । चंचलता की स्थिति में चेतन मन हमारी भावना को अंतस्तल (अचेतन) तक जाने नहीं देता । कायोत्सर्ग की अवस्था में चेतन मन शिथिल हो जाता है और उसका अवरोध भी समाप्त हो जाता है । यह कहने में कोई कठिनाई नहीं होगी कि कायोत्सर्ग साधना का प्रवेश द्वार है और मंजिल भी है । कायोत्सर्ग का परिणाम - महावीर से पूछा गया- भंते ! कायोत्सर्ग से क्या प्राप्त होता है, भगवान् ने कहा- कायोत्सर्ग के द्वारा अतीतकाल में कृत कर्म और वर्तमान का कर्मदोनों का विशोधन होता है। कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त का बहुत बड़ा माध्यम रहा है। एक मुनि के लिए यह विधान है - जैसे मुनि बाहर गया, फिर वापस आया तो पच्चीस श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करे । प्रतिक्रमण करना है तो सौ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करे । पाक्षिक प्रतिक्रमण के दिन सौ श्वासोच्छ्वास और चातुर्मासिक पाक्षिक के दिन पांच सौ श्वासोच्छ्वास का १७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only जैन धर्म के साधना सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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