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कायोत्सर्ग
कायोत्सर्ग हमारी पांचवीं आवश्यकता है । काया का उत्सर्ग या त्याग करना कायोत्सर्ग है | आदमी मरता है, तब काया का उत्सर्ग होता है | किन्तु जीवित अवस्था में काया की प्रवृत्ति को छोड़ देना एक साधना है । अध्यात्म और स्वास्थ्य की दृष्टि से इसका बहुत मूल्य है । आज यह पूरे विश्व में चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय हो रहा है । कोई दांत निकलवाने जाता है तो डाक्टर सुझाव देता है- शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें । डाक्टर नाड़ी को भी देखता है तो कहता है- शरीर को ढीला छोड़ो । जहां भी शरीर में अकड़न या तनाव आता है, शरीर की क्रिया बदल जाती है । सबसे पहले है शरीर
आज शरीर को ढीला छोड़ देने का प्रयोग बहुत चलने लगा है । हठयोग में शवासन का महत्त्व रहा है। यह बहुत कुछ कायोत्सर्ग जैसा ही है | किन्तु जैन परंपरा में कायोत्सर्ग का बहुत महत्त्व रहा है | यदि हम भारतीय दर्शन
और चिन्तन को देखें तो दो प्रकार की विचारधाराएं परिलक्षित होती हैं । एक विचारधारा का मत है- मन एवं मनुष्याणां कारणं बंघमोक्षयोः मन ही मनुष्य के बंध और मोक्ष का कारण है । भगवान् महावीर ने इस मान्यता को स्वीकार नहीं किया । उन्होंने कहा- सबसे पहले काय-दण्ड या शरीर है। कुछ दर्शन मन को ही सब कुछ मान कर चलते हैं । महावीर का सिद्धान्त है- मन ही सब कुछ नहीं है, काया का भी बहुत महत्त्व है । जो काया की शुद्धि नहीं करते, उसका उत्सर्ग करना नहीं जानते, मन की समस्या को कभी सुलझा नहीं सकते । महावीर ने तीन प्रकार के दण्ड बतलाए- मणदण्डे, वयदण्डे, कायदण्डे- मनोदण्ड, वचन-दण्ड और काय-दण्ड ।
कायोत्सर्ग
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