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________________ पुनः पेड़ के पास गया और बोला- 'भाई, तुमने तो बड़ा उपकार का कार्य किया है, साधुवाद है तुम्हें ।' वह व्यक्ति बोला- 'मुझे आपका साधुवाद नहीं चाहिए | आप संन्यासी जैसे दीखते जरूर हैं, किन्तु मैं आपको संन्यासी नहीं मानता ! बिना कुछ ध्यान दिये आपने मुझ पर घृणित आरोप लगा दिया । आप नहीं जानते हैं, यह मेरी मां है, जो बीमार हैं और यह शराब की नहीं, दवा की बोतल है । जहां व्यक्ति दूसरे को देखता है, वहां आरोप की भाषा चलती है । प्रत्येक घटना में अपने आपको देखना शुरू कर दें तो जीवन में एक अपूर्व परिवर्तन की अनुभूति होने लगेगी। प्रतिक्रमण का पहला चरण शुरू हो जायेगा, जीवन की बहुत सारी समस्याएं सुलझनी शुरू हो जाएंगी । आत्म निरीक्षण का प्रारूप भगवान् महावीर ने आत्मनिरीक्षण की सुन्दर विधि प्रतिपादित की । प्रक व्यक्ति यह अनुशीलन करे - किं मे कडं - आज मैंने क्या किया ? किं च मे किच्च मे सेसं- मेरे लिए क्या कार्य करना शेष है ? किं सक्कणिज्जं न समायरामि - वह कौन-सा कार्य है, जिसे मैं कर सकता हूं पर प्रमादवश नहीं कर रहा हूं । किं मे परो पासई किं व अप्पा- क्या मेरे प्रमाद को कोई है अथवा मैं अपनी भूल को स्वयं देख लेता हूं ? किं वाहं खलियं न विवज्जयामि – वह कौन-सी स्खलना है, जिसे मैं छोड़ नहीं रहा हूं । यह आत्मनिरीक्षण का एक प्रारूप है । जो व्यक्ति इसके अनुसार आत्मनिरीक्षण करना शुरू कर देता है, वह सचमुच प्रतिक्रमण की दहलीज पर पांव रख देता है । १७० Jain Education International दूसरा देखता For Private & Personal Use Only जैन धर्म के साधना सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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