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पड़ रहा है । वह ऐसा कर रहा है तो में क्या न करू ? यह कभी स्वीकार नहीं करेगा कि मेरी भूल हुई है । मैंने जो किया या कर रहा हूं, वह अच्छा नहीं है । दूसरे पक्ष का भी यही उत्तर होगा । दोनों ही अपने को निर्दोष बताएंगे । दोष कहां है, इसका पता ही नहीं चल पाता । यह सब इसलिए हो रहा है कि आत्मनिरीक्षण नहीं है । आत्मनिरीक्षण की भावना जाग जाए तो व्यक्ति यही कहेगा कि हां, मेरी भूल हुई है।
आध्यात्मिक व्यक्ति वह होता है, जो प्रत्येक स्थान पर यह देखता है कि मेरी कमी कहां है । जहां 'दूसरा' आता है, अध्यात्मवाद वहीं समाप्त हो जाता है । जो अपने आपको धार्मिक और आध्यात्मिक मानते हैं, क्या वे ऐसा आचरण नहीं कर रहे हैं, जो एक भौतिकवादी करता है । यदि एक धार्मिक व्यक्ति ऐसा कहे कि दूसरे ने मेरे साथ ऐसा किया इसलिए हम भी वैसा कर रहे हैं तो मानना चाहिए कि वह धार्मिक बना ही नहीं है । निश्चय ही उसका मस्तिष्क अभी भौतिकवादी बना हुआ है । इसीलिए वह स्वयं की ओर से आंख मूंद कर दूसरों पर दोषारोपण करता है ।
संन्यासी अवाक रह गया
एक संन्यासी जा रहा था । रास्ते में देखा- एक स्त्री पेड़ के नीचे लेटी हुई है । पास में ही एक बोतल रखी हुई है | एक पुरुष उस स्त्री के समीप बैठा उसके सिर पर हाथ फेर रहा है । संन्यासी की भृकृटि तन गई । वह कठोर वाणी में बोला- 'संध्या का समय है । धर्म-ध्यान करने के समय तुम ऐसा निकृष्ट आचरण क्यों कर रहे हो । अनेक दुर्वचन कहता हुआ वह संन्यासी आगे बढ़ गया । सामने कल-कल नदी बह रही थी । उसी समय नदी में बहती हुई एक नौका तेज हवा में जोर से डगमगाई । कई आदमी लड़खड़ा कर नदी में गिर गए । पेड़ के नीचे बैठे आदमी ने यह दृश्य देखा। क्षण भर का भी बिलब किये बिना वह दौड़ता हुआ आया और पानी में कूद गया । स्वयं की परवाह न करते हुए उसने तैर कर एक-एक कर सब लोगों को पानी से निकाला और फिर चुपचाप पेड़ के नीचे उस स्त्री के पास चला गया । संन्यासी अपनी आंखों से यह सारा दृश्य देख अवाक् रह गया । वह
प्रतिक्रमण
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