SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में ही नहीं, जिन्होंने अणु - विस्फोट किये हैं, किन्तु उनमें भी अणु - विकिरण हो रहा है, जहां अणु-परीक्षण नहीं हुए हैं । इसीलिए आज कहा जाता है कि दूध को बिना उबाले न पीया जाए। पहले यह कहा जाता था कि दूध को बिना उबाले पिया जाए। आज तो पानी भी बिना उबाले पीने लायक नहीं रह गया है । कहा जा रहा है कि सचित्त का त्याग हो या न हो, उबला हुआ पानी ही पिया जाए। बड़े शहरों में तो यह अनिवार्य सा हो गया है । डाक्टर यह भी सुझाव देते हैं कि उबाले बिना फल भी न खाया जाए । सचित्त और अचित्त से भी मुख्य प्रश्न हो गया है स्वास्थ्य और बीमारी का । इसका कारण स्पष्ट है । कुछ न कुछ ऊपर से आ रहा है, जहर के रूप में बरस रहा है और नीचे से भी आ रहा है। उर्वरकों और रसायनों के रूप में धरती पर जो घोला जा रहा है, उसके परिणाम क्या लाभकारी होंगे ? प्रत्येक आदमी के पेट में रोज अन्न-पानी के साथ एक निश्चित मात्रा में जहर प्रवेश कर रहा है । बचाव का कोई रास्ता नहीं है । ऐसा बचा ही क्या है, जिसके साथ में जहर न जाए ? एक प्रकार से पूरी दुनिया ही संक्रामक हो गई है । मानसिक स्तर पर मानसिक स्तर पर देखें । मन पर कितना विकिरण हो रहा है ? राग द्वेष प्रायः हर व्यक्ति में है । अणु-विस्फोटों ने अणुधूलि का जितना विकिरण किया है और जितनी बीमारी की संभावनाएं पैदा की हैं क्या मानसिक स्तर पर उससे कम विकिरण हो रहा है ? पूरा वायुमंडल ही राग-द्वेष के परमाणुओं से भरा है | इस अवस्था में व्यक्ति कच्चा दूध पिये तो क्या वह निरापद हो सकता है ? मन को कैसे ही खुला छोड़ दें, उस पर कोई छत या ढक्कन न डालें तो वह कितना भारी और बोझिल बन जायेगा | मानसिक समस्याएं इसीलिए बढ़ी हैं । एक भाई ने अपनी समस्या प्रस्तुत की - 'मन इतना चंचल और बेचैन रहता है कि उस पर अब मेरा कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया । अनेक दुष्कल्पनाएं निरंतर आती रहती हैं, इसका कारण क्या है ? ' मैंने कहा'कारण तो बहुत साफ है । जब तक मन पर कोई ढक्कन नहीं डालोगे, तब तक ऐसा चलता रहेगा ।' १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only जैन धर्म के साधना सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy