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हैं । सुबह-शाम दर्शनार्थ आने में दो-चार किलोमीटर का चक्कर तो लग ही जाता है । यह बात स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है । शरीर में रक्तसंचार ठीक से होता रहे, पाचनतंत्र ठीक काम करता रहे तो शरीर में कोई विकार उत्पन्न नहीं होगा। यह रक्त-संचार और पाचनतंत्र की प्रणाली ठीक काम तभी करेगी, जब शरीर को श्रम मिलेगा । श्रम शरीर के सारे अवयवों को संचालित और नियंत्रित करता है । वंदना से शरीर को श्रम मिलता है, शारीरिक स्वास्थ्य का अनुभव होता है |
वंदना : परिणाम
गौतम ने महावीर से पूछा- भंते ! वंदना से जीव को क्या लाभ होता
है ?
भगवान् ने कहा- गौतम ! वंदना से जीव नीच गोत्र कर्म को क्षीण करता है, उच्च गोत्र कर्म को बांधता है ।
वंदना या अभिवादन नीच गोत्र को खपा देते हैं । गौतम स्वामी की यह विनम्रता ही थी कि वे स्वयं चलकर केशी स्वामी के यहां गए और केशी मुनि ने भी उचित विनम्र व्यवहार उनके साथ किया । देखने वाले चकित रह गए।
वंदना विधि
आवश्यक के छह अध्ययन हैं। उनमें से एक है वंदना | यह एक स्वतंत्र अध्ययन है । गुरु के पास शिष्य जाता है, उसकी एक निश्चित विधि है | शिष्य गुरु से कुछ दूर खड़ा होकर कहेगा- भंते ! अणुजाणाह मे मेउग्गहआपका जो मित अवग्रह है, क्या मैं उसमें प्रवेश करूं? पहले वह इस प्रकार अनुमति मांगेगा, फिर उनके पास जाएगा, ऐसे ही सीधा अकड़ता हुआ नहीं जाएगा । वह गुरु की आज्ञा प्राप्त होने पर ही उनके पास जाएगा । अनुमति न मिले तो वहीं दूर से ही वंदना कर लेगा । वंदना में तीन बार प्रदक्षिणा कर वह गुरु का चरण-स्पर्श करता है । इतना करने के बाद वह फिर पूछता है... 'भन्ते ! आज का दिन शुभ बीता ? आज का दिन कल्याणकारी रहा ?
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