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सिगरेट, शराब छोड़ो, फिर देखो, कम से कम सौ रुपये तुम्हारे बचते हैं कि नहीं ?
शक्ति घटती है आवेश से
यह भी एक प्रकार का बढ़ना है । एक है वेतनमान का बढ़ना । दूसरा यह है- जो है, उसमें से घटाएं नहीं, निश्चय ही यह बात बढ़ने के रूप में ली जाएगी । आयुष्य की भी ठीक यही बात है । जिस व्यक्ति का जितना आयुष्य बंधा हुआ है, उससे ज्यादा तो हो ही नहीं सकता । किन्तु उसमें से घटने की गति को हम रोक सकते हैं, कम कर सकते हैं । इस दृष्टि से देखें तो पाएंगे कि पूरा जीवन विरले ही लोग जीते हैं । प्रायः व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है | जो अपने आवेश, उत्तेजना को शान्त रखता है, निश्चय ही अपने आयुष्य को बढ़ा लेता है |
आवेश और उत्तेजना हमारी शक्ति का ह्रास करते हैं । शरीरशास्त्रियों का मत है- एक घण्टे का तीव्र क्रोध नौ घण्टे की जीवनी शक्ति को कम कर देता है । क्रोध शरीर में भयंकर जहर पैदा करता है । प्रत्येक आवेश के साथ हमारी जीवनी-शक्ति कम होती जाती है । अभिवादनशील व्यक्ति का इसलिए आयु और बल बढ़ता है कि वह आवेग-आवेश के संतुलन का सूत्र सीख लेता है।
स्वास्थ्य का सूत्र
प्रातः और सायं लोग वंदना के लिए आते हैं। सब साधु-साध्वियों को वंदना करते हैं । उसमें काफी उठ बैठ हो जाती है । उससे आयु क्यों नहीं बढ़ेगी । वंदना करने वाला अपने अहं का विसर्जन करता है । आज शारीरिक श्रम की पद्धति बहुत कम है | हजार व्यक्तियों में शायद दस-पांच व्यक्ति ही व्यायाम करते होंगे अथवा दो चार किलोमीटर भ्रमण करते होंगे । पंचांग प्रणति वंदना में एक तरह से आसन का अभ्यास हो जाता है | जब गुरुदेव
जैन विश्व भारती लाडनूं में विराजते हैं तब वहां आने वाले लोग कहते हैंमहाराज ! आप यहां विराजते हैं तब हमारी बहुत सारी बीमारियां मिट जाती
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__ जैन धर्म के साधना सूत्र
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