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स्वयं फटेहाल जीवन बिताना । हम स्वयं साधना का प्रयोग करें, मंगल का प्रयोग करें, स्वयं उनकी सूत्र-पद्धति में जाएं तो सचमुच हमारे लिए सारी दिशाएं मंगलमय बन जाएंगी। यह मंगलसूत्र की साधना का बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र है।
"आरोग्ग-बोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं किंतु"- इसमें भावना की गई है कि सिद्ध ! आपके द्वारा मुझे आरोग्य मिले, बोधि मिले, समाधि मिले । जीवन की हमारी तीन भावनाएं होती हैं ।
आरोग्य- शरीर का आरोग्य, मन का आरोग्य और भावना का आरोग्य ।
बोधि मिले, चेतना मिले । समाधि मिले ।
आधि-उपाधि के चक्रव्यूह से निकलकर हम समाधि की अवस्था में जा सकें तो उससे बड़ा दुनिया में कोई मंगल नहीं हो सकता | हम भावना करें
और सूक्ष्म मन की सारी शक्ति को जुटाकर भावना करें । आधि, व्याधि और उपाधि- शरीर की बीमारी, मन की बीमारी और कषाय की बीमारी- इन तीनों से मुक्त होकर हम समाधि के क्षेत्र में प्रवेश करें | धर्म हमारे लिए इसीलिए मंगल है कि इसके द्वारा व्याधि, आधि और उपाधि से मुक्ति मिलती और समाधि के द्वार में प्रवेश संभव होता है।
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जैन धर्म के साधना सूत्र
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