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वंदना
वंदना या अभिवादन एक शिष्टाचार है । शिष्ट वह है, जो अनुशासित है । जिस समाज में अनुशासन है, व्यवस्था है, सौन्दर्य है, 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' की समन्विति है, वह समाज शिष्ट है । बोलना, चलना, उठना, बैठना- ये सारे शिष्टाचार में निहित हैं । अभिवादन शिष्टाचार का एक अंग है | उद्दण्ड व्यक्तित्व कभी अभिवादन नहीं कर सकता । अभिवादन व्यावहारिक भी है और आध्यात्मिक भी है । धर्म के क्षेत्र में वंदना का जितना मूल्य या महत्त्व है, व्यवहार के क्षेत्र में भी उसका उतना ही महत्त्व और मूल्य है । कहा गया
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।
चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते, आयुर्विद्यायशोबलम् ॥ जो व्यक्ति अभिवादन करना जानता है, करता है, नित्य अनुभवी लोगों की सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि होती है ।
बढता है आयुष्य
अभिवादन से विद्या और यश की प्राप्ति तो होती है, किन्तु आयुष्य और बल कैसे बढते हैं ? यह प्रश्न हो सकता है । यह बहुत गहरी बात है। वाल्मीकि रामायण में कई स्थानों पर कहा गया है- यह आचरण आयुष्य है । आयुष्य ऐश्वर्य और अनायुष्य अनैश्वर्य । आयुर्वेद में एक रसायन को सबसे उत्तम रसायन मान गया है, उसका नाम है- आचार रसायन । पारद, गंधक आदि भौतिक रसायनों के अतिरिक्त यह भी एक रसायन है । विनम्रता, शालीनता आदि का भी रसायन होता है । ये सब आचार रसायन के अन्तर्गत
वंदना
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