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________________ हुआ तब देखा गया कि खरगोश के बच्चों के जो केश हैं, उनमें नीले रंग की छाया है । नीले रंग का प्रभाव । नीग्रो का फोटो सामने था । एक गर्भिणी उसको देखती रहती । बच्चा नीग्रो जैसा पैदा हुआ । हमारे अन्तर्जगत् में, सूक्ष्म जगत् में भावना का इतना प्रबल प्रभाव होता है कि जिस प्रकार की भावनाएं निरन्तर चलती रहती हैं, व्यक्ति का परिणमन उसी प्रकार होता चला जाता है । हम स्थूल जगत् में बहुत कम बदलते हैं किन्तु भीतर का जगत् इतना बदलता है और सूक्ष्मता से बात को पकड़ता है कि हम सामान्यतः कल्पना ही नहीं कर सकते । यह भावना का प्रयोग बहुत महत्त्वपूर्ण प्रयोग है । हिमालय में कितनी भयंकर बर्फ पड़ती है । तिब्बत के योगियों में एक कसौटी थी कि वहां साधक साधना करता और साधना की परीक्षा देनी होती । गुरु परीक्षा लेता तो दो प्रकार का प्रयोग करवाताबर्फ पर बैठो । बर्फ पर बैठकर पसीना निकाल दे तो कसौटी में उत्तीर्ण । लामा बर्फ की शिला पर बैठता, ध्यान करता, भावना का प्रयोग करता और सारे शरीर से पसीना चूने लग जाता । कसौटी में वह उत्तीर्ण हो जाता । कैसे हो सकता है ? ध्यान में बैठो और पसीना निकल आए ! हो सकता है, बहुत संभव है । बर्फ पर बैठे, आतप की भावना करें, सूर्य की भावना करें, बर्फ पर बैठे हुए भी पसीना चूने लग जाएगा, सारा शरीर गर्म हो जाएगा । भगवान् महावीर वस्त्र नहीं रखते थे । क्या यह संभव है, इतनी भयंकर सर्दी को आदमी इस प्रकार सहन कर सके ? तर्क हो सकता है कि वे अनन्तशक्तिशाली थे । किन्तु अनन्तशक्ति का मतलब यह थोड़ा ही है कि सर्दी न लगे । अनन्तशक्ति का मतलब यह है कि उनका वीर्य कभी विचलित नहीं होता, चाहे कितने ही भयंकर उपद्रव और कष्ट आ जाएं । उनमें इतना असीम पराक्रम होता है कि उन्हें कोई विचलित नहीं कर सकता । यह भी कड़कड़ाती सर्दी में वे रहते थे । कैसे ? -मान लें भगवान् इतने शक्तिशाली थे, पर उनके साथ हजारों मुनि नग्न रहने वाले थे, वे किस प्रकार सहन करते थे ? मात्र भावना का प्रयोग । आज भी कुछ मुनि नग्न रहते हैं । आज की चर्चा करना तो मैं पसन्द नहीं करता, क्योंकि वे वस्त्र तो नहीं रखते किन्तु चतुर्विंशति स्तव (२) १५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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