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________________ महाराज ! कितना उदंड है यह आदमी ! निष्प्रयोजन आपको गालियां बक रहा है । आचार्य भिक्षु तो बहुत मर्मज्ञ थे । वे ऊपर को नहीं देखते थे, चमड़ी को नहीं देखते थे । वे अन्तस्तल तक पहुंचते थे, गहाराई तक जाकर देखते थे । उनकी प्रज्ञा इतनी जागृत थी कि भीतर में जाकर वस्तु का मूल्यांकन करती थी । आचार्य भिक्षु ने कहा- जो गालियां दे रहा है, वही मेरा सबसे बड़ा भक्त होने वाला है । लोगों ने कहा- यह कैसे ? आचार्य भिक्षु ने कहाकोई आदमी कुम्हार के घर एक घड़ा खरीदने जाता है तो सबसे पहले घड़े को बजाकर देखता है कि वह फूटा हुआ तो नहीं है । जब दो-चार पैसे के घड़े की इतनी परख करता है तो भला जिसे गुरु मानना है, उसे दस-बीस गालियां दिए बिना कैसे स्वीकार करे ? परीक्षा करेगा, पहले देखेगा, तोलेगा कि गुरु में समताभाव कितना है, गालियों का क्या प्रभाव होता है उस पर | पूरी जांच-पड़ताल करेगा, फिर स्वीकार करेगा । ऐसा ही हुआ । गालियां बकने वाला वही व्यक्ति एक दिन आचार्य भिक्षु का बड़ा श्रावक बन गया ! सत्य के क्षेत्र में जहां सत्य को जानना है, उसे देखना है, वहां बुद्धि और तर्क का उपयोग होना चाहिए, विचार का उपयोग होना चाहिए और हो सके तो अनुभव का उपयोग होना चाहिए | श्रद्धा का क्षेत्र है अपनी संकल्प-शक्ति का विकास, भावना का प्रयोग | जहां भावना का प्रयोग करना है, जहां संकल्प-शक्ति का उपयोग करना है, सृजन करना है, कुछ निर्माण करना है, वहां श्रद्धा का पूरा उपयोग होना चाहिए । जहां श्रद्धा में एक भी छिद्र बन जाता है वहां नौका डुबाने वाली बन जाती है । भगवान् महावीर की भाषा में भावना एक नौका है । उसमें यदि छेद नहीं है तो वह पार पहुंचा देती है । एक भी छेद हो गया तो बीच में ही डुबो देती है । श्रद्धा है हमारी भावना में । बड़ा चमत्कार है । जिस व्यक्ति में भावना का बल आ गया, वह अद्भुत काम कर जाता है । अभी दो-चार दिन पूर्व एक चर्चा चल पड़ी । डॉ० टाटिया ने कहा- दर्द बहुत है । मैंने कहा-रंग का प्रयोग करें, भावना का प्रयोग करें । लाल रंग का ध्यान करें । ध्यान किया, भावना का प्रयोग किया । फ़िर आए और कहने लगे- इतनी गर्मी हो गई कि रात-भर नींद नहीं ले सका । ऐसा लगा जैसे सारे शरीर में आग लग गई १५० जैन धर्म के साधना सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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