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सौ श्वास में चार लोगस्स का ही ध्यान कर लें, फिर देखें- मस्तिष्क में कितनी शान्ति की अनुभूति होती है। पूरे दिन एक विचित्र सी मस्ती रहेगी ।
यह लोगस्स की पूरी विधि है । शुद्ध उच्चारण, अर्थ का बोध, रंगों के साथ मानसिक चित्र का निर्माण और श्वास के साथ लोगस्स का जपइस विधि से लोगस्स का पाठ किया जाए तो वह शक्तिशाली बन जाएगा, बहुत प्रभावी सिद्ध होगा ।
स्तुति का परिणाम
उत्तराध्ययन सूत्र में पूछा गया - भगवन् ! चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति करने से जीव क्या प्राप्त करता है ? भगवान् ने उत्तर दिया- दंसणविसोहिं जणयई- दर्शन की विशुद्धि को प्राप्त होता है ।.
दर्शन नैश्चयिक भी होता है और व्यावहारिक भी । उसकी विशुद्धि मोहनीय कर्म का क्षय, उपशम या क्षयोशम होने से होती है। अनंतानुबंधी चतुष्क और तीन सम्यक्त्व की प्रकृतियां - इनके क्षयोपशम से दर्शन की विशुद्धि होती है । चौबीस तीर्थंकर या वीतराग की स्तुति या ध्यान करने से मोहनीय कर्म शान्त होते हैं ।
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आकर्षण जागे
व्यवहारनय की दृष्टि से विचार करें। दर्शन की विशुद्धि से श्रद्धा पैदा होती है, वीतराग या अर्हत् के प्रति । श्रद्धा पैदा करना भी बहुत जरूरी है । यदि वीतराग देव के प्रति श्रद्धा नहीं होती है तो वह दर्शन ज्यादा नहीं चलता है । कोई भी दर्शन चलता है, संघ और शासन चलता है तो वह आस्था के बल पर चलता है । कोई भी चीज कितनी ही अच्छी क्यों न हो, उसके प्रति आकर्षण पैदा नहीं होगा तो उसका कोई उपयोग नहीं होगा । आज मार्बल बहुत निकल रहा है । उसका उपयोग भी देश-विदेश में बहुत बढा है । मेवाड़ में यह प्रचुर मात्रा में था किन्तु मंदिरों के अलावा और कहीं देखने को भी नहीं मिलता था । आज एक आकर्षण पैदा हुआ है और उसका परिणाम यह आया - पचास किलोमीटर का क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र बन गया है। छोटे
चतुर्विंशतिस्तव
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