________________
काला है । मल्लि और पार्श्व का रंग नीला है। शेष तीर्थंकरों का रंग स्वर्णमय है। इस प्रकार तीर्थंकरों के अलग-अलग रंग हैं । साधना में जिस तीर्थंकर का नाम आए, तत्काल उस तीर्थंकर से संबंधित रंग का चित्र अपने मस्तिष्क में बना लें। ऐसा चित्र मस्तिष्क में बन जाता है । केवल अभ्यास की जरूरत है । अमेरिका में ऐसे प्रयोग हुए हैं । एक व्यक्ति एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग की कल्पना दिमाग में कर रहा था। एक सूक्ष्मसंवेदनशील कैमरे के द्वारा उसका फोटो लिया गया, उसके मस्तिष्क में उस मकान का फोटो आ गया । एक व्यक्ति खड़ा-खड़ा एक सुन्दर कार के बारे में सोच रहा था । उसका फोटो लिया गया तो उसके दिमाग में उस कार का फोटो आ गया । हमारे दिमाग में ऐसे चित्र बनते हैं । आवश्यकता है अभ्यास की, जिससे इन चित्रों को साक्षात् कर सकें।
श्वास के साथ
लोगस्स का पाठ प्रायश्चित् के लिए बहुत काम में आता था । इसीलिए लोगस्स का ध्यान श्वासोच्छ्वास के साथ किया जाता था । एक श्वासोच्छ्वास के साथ एक पद का मानसिक उच्चारण | लोगस्स उज्जोयगरे- यह एक पद है | धम्मतित्थयरे जिणे- यह दूसरा पद है । प्रत्येक पद के साथ श्वासोच्छ्वास का प्रयोग और पद का मानसिक उच्चारण, इस प्रकार चन्देसु निम्मलयरा तक पच्चीस श्वास का कायोत्सर्ग संपन्न होता है । पच्चीस श्वास लेने में श्वास भी लंबा होगा । एक लोगस्स के पाठ में लगभग एक मिनट से ज्यादा लगेगा। वस्तुतः लाभ तभी होगा, जब लोगस्स का पाठ विधिवत् करें, श्वास के साथ धीमे-धीमे बराबर एक लय के साथ उच्चारण करें ।
वि० सं० २०३५, गंगाशहर चतुर्मास । संवत्सरी का दिन । मैं एकान्त में प्रतिक्रमण कर रहा था । मैंने श्वास के साथ चालीस लोगस्स का ध्यान किया । समय तो लगा किन्तु इतना अच्छा ध्यान हुआ कि शायद मेरे लिए वह अपूर्व था । इसे कोई भी करके देख सकता है । चालीस लोगस्स का ध्यान
और प्रत्येक पद श्वास के साथ | समय चाहे आधा घण्टा लग जाए पर इतना निश्चित है कि फिर कभी ट्रॅक्वेलाइजर की जरूरत नहीं पड़ेगी । ज्यादा नहीं,
१४६
जैन धर्म के साधना सूत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org