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________________ भक्ति कैसे करें? एक प्रश्न है- कैसे करें इस निष्काम भक्ति की साधना ? लोगस्स की सात गाथाएं हैं । सात पदों के सात अलग-अलग प्रयोग हैं । स्वास्थ्य, बंधनमुक्ति, स्मृति का विकास, दृष्टि का विकास आदि आदि बातें कैसे सिद्ध होती हैं, इसका एक पूरा कल्प बना हुआ है । वस्तुतः लोगस्स की एक विधि निश्चित हो, यह अपेक्षित है । उस विधि के कुछेक बिन्दु ये हैं पहला तत्व है उच्चारण की शुद्धि । उच्चारण सही होता है तो एक प्रकार की तरंगें बनती हैं । हमारे चिन्तन की तरंगें होती हैं, वाणी और क्रिया की भी तरगें होती हैं । हमारी कोई भी प्रवृत्ति ऐसी नहीं है, जिसमें तरंगें न उठती हों । तरंग का एक नियम है । फ्रिक्वेंसी के आधार पर ही उस वेवलेंथ या तरंग की लम्बाई ज्ञात होती है ।(मंत्र की शक्ति इस तथ्य पर बहुत निर्भर है । इसीलिए शुद्ध लयबद्ध उच्चारण होना चाहिए । ) दूसरा तत्व है अर्थबोध । यह ज्ञात होना चाहिए कि मैं क्या बोल रहा हूं, किस तीर्थंकर की स्तुति कर रहा हूं । मानसिक चित्र का निर्माण तीसरा तत्व है मानसिक चित्र का निर्माण । हम जिस चित्र का मन में निर्माण करेंगे, वही घटित होना शुरू हो जाएगा। जो अर्हत् का मानसिक चित्र बनाता है, वह अर्हत् रूप में परिणत होना शुरू हो जाता है, उसकी वैसी ही परिणति होनी शुरू हो जाती है । चौबीस तीर्थंकरों के अलग-अलग रंग हैं । जयाचार्य ने बड़ी चौबीसी में सभी तीर्थंकरों के रंगों का पूरा विवेचन किया है । आचार्य हेमचन्द्र ने भी अभिधान चिन्तामणि में चौबीस तीर्थंकरों के रंगों का उल्लेख किया है रक्तौ च पद्मप्रभवासुपूज्यौ, शुक्लौ च चन्द्रप्रभपुष्पदंतौ । कृष्णौ पुनर्नेमि मुनी विनीलौ, श्रीमल्लिपार्यो कनकत्विषोन्ये ॥ पद्मप्रभु और वासुपूज्य, इन दो तीर्थंकरों का रंग है लाल | चन्द्रप्रभ और पुष्पदंत- इन दो तीर्थंकरों का रंग सफेद है । नेमि और सुव्रत- इनका रंग चतुर्विंशति स्तव १४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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