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अपने संवाद भेजे । राजा स्वदेश पहुंचा । वह विदेश से बहुत सारे कीमती उपहार भी अपने साथ लाया था । राजा ने एक कीमती हार बड़ी महारानी को दिया । दूसरी रानी को बाजूबन्द और तीसरी रानी को स्वर्णनुपुर दिए। चौथी रानी से कहा- जो कुछ शेष है, वह सब तुम्हारा है । तीनों रानियां ईर्ष्या से जलभुन गईं । बोलीं- महाराज ! इतना बड़ा पक्षपात । हमें ये छोटी चीजें दी और इसे अपना सब कुछ दे दिया । यह तो अन्याय है । राजा ने बड़ी शांति से कहा- लो, ये तुम चारों के पत्र हैं, इन्हें पढो | पत्रों को पढा गया । बड़ी महारानी ने लिखा था- आप आ रहे हैं तो कृपा करके मेरे लिए एक अच्छा-सा हार लाना न भूलें । राजा ने कहा- तुमने जो मांगा था, वह मिला या नहीं ? रानी ने स्वीकारोक्ति दी और चुप हो गई । दूसरी और तीसरी रानी का पत्र पढा गया । उन दोनों ने क्रमशः बाजूबन्द और नुपुर की मांग की थी। राजा ने उन्हें संतुष्ट कर दिया । चौथी रानी का पत्र पढा गया, उसने लिखा था- महाराज ! बहुत दिन हो गए | आप जल्दी से यहां पधारें । मुझे और कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ आप यहां जल्दी पहुंचें । यही हमारी चाह है । राजा ने कहा- जिसने जो मांगा, उसे वही मिला | मैंने क्या अन्याय किया, क्या पक्षपात किया ? जिसने मुझे मांगा, उसे मेरा सब कुछ मिल गया।
जहां एक चीज मांगी जाती है, वहां एक चीज मिलती है । जहां बड़ी चीज मांगी जाती है, वहां उसके साथ और भी बहुत सारी चीजें मिल जाती हैं । निर्जरा की मांग करने पर दूसरी चीजें स्वतः मिल जाती हैं इसलिए छोटी चीजें मत मांगो । मा अप्पेण लुपहा बहु-थोड़े के लिए बहुत को मत गंवाओ । आत्मशुद्धि की कामना करो, निर्जरा की कामना करो । बड़ी चीज को मांगो । राजा आएगा तो उसके साथ सारा लवाजमा अपने आप आएगा । गुरु आएंगे तो शिष्य समुदाय साथ में होगा ही | बड़े के साथ छोटी चीजें तो आ जाती हैं, किन्तु छोटे के साथ बड़ा कभी नहीं आता । यह जैन भक्ति का महत्त्वपूर्ण सूत्र है- निर्जरा के लिए करो, कामनाएं स्वयं पूर्ण होंगी । मन की निर्मलता नहीं है, भाव की विशुद्धि नहीं है और कामना करें कि मुझे यह मिल जाए, वह मिल जाए, यह संभव नहीं है ।
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जैन धर्म के साधना सूत्र
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