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________________ मेल जाए । आचार्य भिक्षु का यह सिद्धान्त ध्यान में रखें- पुण्य के लिए कोई काम मत करो । करणी करो निर्जरा के लिए, आत्मशुद्धि के लिए, पुण्य अपने आप हो जाएगा | उसके लिए अलग से प्रयल करने की कोई जरूरत नहीं है । आचार्य भिक्षु ने उदाहरण के द्वारा इसे समझाते हुए कहा- आदमी खेती करता है अनाज के लिए | उसके साथ कड़बी, कलाल, भूसा आदि अपने आप हो जाते हैं । खेती का वह मुख्य प्रयोजन नहीं होता । दो प्रकार के फल होते हैं- मुख्य फल और प्रासंगिक फल । मुख्य फल के साथ प्रासंगिक फल स्वतः हो जाता है। भक्ति का प्रयोजन हमारी भक्ति का प्रयोजन क्या है ? इस सन्दर्भ में महावीर ने एक सुन्दर सूत्र दिया-ननत्थ थेनिज्जरट्ठयाए- केवल निर्जरा के लिए करो | आचार किसलिए ? निर्जरा के लिए । तपस्या किसलिए? केवल निर्जरा के लिए | स्वाध्याय किसलिए? निर्जरा के लिए । भक्ति किसलिए ? निर्जरा के लिए। पचास प्रश्न पूछे, महावीर का एक ही उत्तर होगा- निर्जरा के लिए । जहां भी निर्जरा का उद्देश्य गौण होता है, वहां मुख्य उद्देश्य भटक जाता है । निर्जरा का तात्पर्य है आत्मशुद्धि के लिए, इससे प्रासंगिक रूप में पुण्य का बन्ध होता है, कामनाएं पूरी होती हैं, कुछ पौद्गलिक योग भी मिलता है । किन्तु यह विवेक भक्तिमार्ग में होना चाहिए और जैन भक्ति में यह मुख्य विवेक हैकेवल कामना के लिए कुछ मत करो | करो तो निर्जरा के लिए करो । जहां यह बात होगी, वहां सब कुछ अपने आप मिलता जाएगा । जैसी चाह : वैसी प्राप्ति एक मार्मिक कहानी है । राजा परदेश गया । उस जमाने में आज जैसे तीव्रगामी साधन नहीं थे कि एक दिन में सुदूर देश में पहुंच जाए । रथ या हाथी. ही यातायात के साधन थे । राजा गया, किन्तु वह जल्दी लौट नहीं सका । कुछ दिनों बाद राजा का समाचार पहुंचा कि जल्दी ही आ रहा हूं। राजा के चार रानियां थीं। चारों ने ही प्रसन्नता प्रकट की, राजा को अपने चतुर्विंशति स्तव १४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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