________________
सोलह वर्ष लग गए । आगमवेत्ता जयाचार्य की चौबीसी को पढ़ें तो ऐसा लगेगा जैसे भक्ति का झरना सा फूट पड़ा है | चौबीसी का संगान होते ही व्यक्ति भक्ति की गहराई में डूब जाता है ।
चौबीसी में अध्यात्मवाद
चौबीसी में केवल भक्ति नहीं है, अध्यात्म का भी जीवन्त स्पर्श है । अध्यात्म का पहला बिन्दु और अध्यात्म का चरम बिन्दु- जिज्ञासा की एक तलहटी और दूसरा शिखर है । जयाचार्य ने स्तुति के माध्यम से इस जिज्ञासा का समाधान किया- चेतन और तन की भिन्नता का बोध- भेदविज्ञान अध्यात्म का पहला बिन्दु है और वही अध्यात्म का चरम बिन्दु है । जो आत्मा और शरीर अथवा पुद्गल का भेद नहीं जानता, वह आध्यात्मिक नहीं हो सकता, इसलिए वह अध्यात्म का पहला बिन्दु है । आत्मा और शरीर का भेद अथवा पृथक्करण करके ही कोई मुक्त हो सकता है इसलिए वह अध्यात्म का चरम बिन्दु है । समाधान का पद है- 'चेतन तन भिन्न लेखवी ।'
अध्यात्म की जागृति के लिए दो ध्यान बतलाए गए हैं- धर्म्यध्यान और शुक्लध्यान । धर्म्यध्यान विचय ध्यान है । उससे पदार्थ के स्वरूप-वस्तुसत्य को जाना जा सकता है । आज का वैज्ञानिक यंत्र के माध्यम से सूक्ष्म सत्यों को जान लेता है । आध्यात्मिक व्यक्ति विचय ध्यान की पद्धति से सूक्ष्म सत्यों का बोध करता है । शुक्लध्यान आत्मा के साक्षात्कार की पद्धति है । इसके माध्यम के साधक पुरुष आत्मानुभूति की दिशा में प्रस्थान करता है ।
भेदविज्ञान की साधना की आधारभूमि है तप और तप का प्राण-तत्त्व है अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थिति में सम रहने की मनोवृत्ति । जयाचार्य की रहस्य वाणी में यही सत्य अनावृत हुआ है । उसकी समग्रता को पढ़ें :
अनुकूल प्रतिकूल सम सही, तप विविध तपंदा ।
चेतन तन भिन लेखवी, ध्यान शुक्ल ध्यावंदा । सहिष्णुता और तप की पार्श्वभूमि एक ही रही है | तप के बिना सहिष्णुता का विकास संभव नहीं है और सहिष्णुता के बिना तप का विकास
चतुर्विंशति स्तव
१३७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org