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चतुर्विशति स्तव (१)
तीन योग मुख्य माने गए हैं- ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग । जैनदर्शन ज्ञानयोग का अनुगामी है ? भक्तियोग अथवा कर्मयोग का अनुगामी है ? कुछ केवल ज्ञानयोग पर चलते हैं । कुछ केवल भक्तिमार्ग पर चलते हैं । कुछ कर्मवादी हैं, जो कर्म को ही सब कुछ मानते हैं । जैनदर्शन क्या मानता है ? जैन दर्शन अनेकान्तवादी है। किसी एक वाद को नहीं मानता, एक को ही पकड़ कर नहीं बैठता । उसने तीनों को समान रूप से महत्त्वपूर्ण माना है।
भक्ति की परंपरा
दिगंबर परम्परा के महान् आचार्य कुन्दकुन्द ने अध्यात्म जगत् का महत्वपूर्ण ग्रन्थ 'समयसार' लिखा । उन्होंने श्रुतभक्ति, आचार्यभक्ति, तीर्थंकर भक्ति आदि अनेक भक्तियां लिखीं । मैं मानता हूं- वह व्यक्ति जिसमें श्रद्धा
और भक्ति नहीं है, आध्यात्मिक नहीं हो सकता । आचार्य भिक्षु महान् तत्ववेत्ता थे । कुन्दकुन्द ने निश्चयनय की दृष्टि से आत्मा के बारे में सोचा। आचार्य भिक्षु ने अहिंसा के बारे में निश्चयनय की दृष्टि से सोचा । इतनी गहराई से अहिंसा पर सोचने वाला शायद कोई आचार्य नहीं मिलेगा । एक
ओर इतने बड़े विचारक, दूसरी ओर महान् भक्त, जिनवाणी के भक्त, महावीर के भक्त । जयाचार्य भी महान् तत्त्ववेत्ता थे । उन्होंने आगम का गहन अध्ययन किया । इतना गहरा अध्ययन कि पांच वर्ष में भगवती जोड़ सूत्र की रचना कर डाली । पूज्य गुरुदेव कहते हैं- श्रीमज्जयाचार्य को 'भगवती जोड़' बनाने में पांच वर्ष लगे और मुझे 'सेवाभावी' काव्य की रचना में ही
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जैन धर्म के साधना सूत्र
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