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________________ हमारे सामने स्पष्ट हो तो शायद बहुत सारी भ्रान्तियां अपने आप खत्म हो सकती हैं। धर्म है अपनी शरण अपनी शरण में जाने का अर्थ है- धार्मिक होना | वही व्यक्ति धार्मिक हो सकता है, जिसने अपनी शरण ली है । जिसने अपनी शरण में जाने का अर्थ नहीं समझा, वह धार्मिक नहीं हो सकता, धर्म का अनुयायी हो सकता है । ऐसे धर्म के अनुयायी लोग धर्म के नाम पर पता नहीं क्या क्या करते हैं ? आज धर्म के नाम पर क्या नहीं हो रहा है | धर्म एक उपभोग्य वस्तु बना ली गई है । धर्म नहीं है इसलिए धर्म के नाम पर बहुत कुछ चलता है, चलता रहता है । यदि धर्म जीवन में आ जाए तो सारा का सारा कचरा अपने आप निकल जाएगा, बाहर की बेकार बातें अपने आप दूर हो जाएंगी । लाख रुपए किस लिए एक लड़के ने अपने मित्र से कहा-'मेरे पिताजी ने मेरे सामने एक प्रस्ताव रखा है।' 'क्या प्रस्ताव है वह ?' 'पिताजी कहते हैं कि यदि तुम बुराई छोड़ दो तो मैं तुम्हें एक लाख रुपया दे दूं । लेकिन बुराई बिल्कुल छोड़नी पड़ेगी । मैंने प्रस्ताव ठुकरा दिया ।' मित्र ने कहा-'तुमने बड़ी मूर्खता की । एक लाख रुपया किसे कहते हैं | बहुत बड़ी बात है । तुम्हें ले लेने चाहिए।' लड़के ने मित्र को समझाने की कोशिश करते हुए कहा-'लेकर क्या करूं? अगर बुराई छोड़ दूं तो लाख रुपए का फिर उपयोग ही क्या होगा मेरे लिए ? शराब है तो ये सारी मांगें हैं | शराब छोड़ दूं तो फिर कोई मांग होगी ही नहीं । और कोई मांग न हो तो फिर लाख रुपए का क्या करूंगा । व्यर्थ का बोझ क्यों उठाऊं ।' कैसा विचित्र विरोधाभास है पर सचाई यही है । लाख रुपया कोई लेना नहीं चाहता, क्योंकि लाख रुपया ले तो फिर सब कुछ छोड़ना पड़ता है और वह छोड़ना नहीं है । पदार्थ से, विभाव से इतना अनुबन्ध हो गया कि वह छूट नहीं रहा है और आत्मा या धर्म को इसीलिए आदमी पकड़ नहीं पा रहा है | चत्तारि मरणं पवज्जामि १२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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