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तो कायोत्सर्ग करो । और कायोत्सर्ग में कोई बाधा न आए तो समझो कि मंगल हो गया ।
उत्तम कौन ?
आत्मा ही उत्तम है । आत्मा के सिवाय कोई उत्तम नहीं हो सकता, प्रबलतम नहीं हो सकता । एक पदार्थवादी के लिए पदार्थ वस्तु परम हो सकती है, उत्तम हो सकती है । पदार्थवादी के लिए सोना उत्तम हो सकता है पर आज सोने से भी ज्यादा कीमती धातुएं आ गईं । सोना पुराना पड़ गया । आज नई धातुएं इतनी कीमती हैं कि सोना उनके सामने कुछ भी नहीं है । यूरेनियम के सामने सोने का क्या मूल्य है ? सोने से ज्यादा कीमती है हीरा । हीरा उत्तम हो गया । आज हार से भी ज्यादा कीमती और मंहगा हो गया है णि अर्थात् लाल । यह है पदार्थ का स्वरूप । पदार्थ मूल्य- सापेक्ष होता है। बदलते मूल्यों के साथ पदार्थ की उत्तमता भी बदलती रहती है । किन्तु आत्मवादी के लिए सबसे बड़ा उत्तम है आत्मा । अर्हत् उत्तम हैं, क्योंकि वह • आत्मा है। सिद्ध उत्तम है, क्योंकि वह आत्मा है । साधु उत्तम है क्योंकि वह आत्मा है और धर्म उत्तम है, क्योंकि वह आत्मा का स्वरूप है ।
जब आत्मा ही मंगल और आत्मा ही उत्तम है तो किसकी शरण में जाना चाहिए ? सीधा-सा और सरल-सा उत्तर होगा - अप्पाणं सरणं गच्छामि - आत्मा की शरण ग्रहण करता हूं । अर्हत् की शरण में जाने का अर्थ है अपनी आत्मा की शरण में जाना । सिद्ध और धर्म की शरण में जाने का अर्थ है अपनी आत्मा की शरण में जाना ।
तीनों पदों - मंगल, उत्तम और शरण का निष्कर्ष क्या होगा ? तात्पर्य क्या निकलेगा ? दुग्धस्य सारं नवनीतं, दूध का सार है घी, नवनीत । पुष्पस्य सारं परिमलं - फूल का सार है परिमल । इसी तरह मंगल, उत्तम और शरण का सार होगा - आत्मा की शरण लेना । वही व्यक्ति सही अर्थ में धार्मिक हो सकता है, जो आत्मा की शरण में रहता है ।
भ्रान्त चिन्तन
कुछ प्रबुद्ध व्यक्ति आए। बोले-महाराज ! एक प्रश्न अनेक बार उभरता रहता है कि दुनिया में इतने अहिंसक, इतने धार्मिक लोग हैं फिर भी उतना
चत्तारि सरणं पवज्जामि
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