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है कि ग्रहण को प्रत्यक्ष या खुली आंखों से नहीं देखना चाहिए, थाली में पानी भरकर उसमें देखा जा सकता है । किन्तु उस ग्रहण के बारे में तो यह जानकारी मिली थी कि पानी में भी इसको नहीं देखना चाहिए। संभव है कि उससे दृष्टि क्षीण हो जाए । सूक्ष्म जगत् में, हमारे आस-पास में किस प्रकार की घटनाएं घटित होती हैं, उन घटनाओं पर हम ध्यान नहीं देते, केवल स्थूल दृष्टि से माप लेते हैं ।
केवल स्थूल सत्यों में आस्था रखने वाला व्यक्ति सम्यकदृष्टि नहीं हो सकता । सम्यक् दृष्टि होने का अर्थ है - स्थूल और सूक्ष्म दोनों के प्रति समान दृष्टि बन जाए। हम केवल यह मान कर न चलें कि यह शरीर ही हमारा अस्तित्व है । हम यह मानकर चलें कि इस शरीर से परे भी हमारा अस्तित्व है । यदि यह दृष्टि जाग जाए, अपने सूक्ष्म शरीर की दृष्टि साफ हो जाए तो दृष्टिकोण सम्यक् बन जाता है ।
मंगल आनंद
दूसरी बात है - आनन्द मंगल है | आनंन्द स्वयं मंगल है, सुख स्वयं मंगल है, किन्तु यह ऐकान्तिक बात नहीं है । कुछ लोगों का आनन्द दूसरों के लिए अभिशाप बन जाता है । जिनका आनन्द दूसरों के लिए अभिशाप बन जाए, जिनका सुख दूसरों के लिए दुःख का कारण बन जाए, वह मंगल नहीं होता । मंगल वह होता है, जो दूसरों के लिए अभिशाप न बने, दूसरों के लिए दुःख और समस्या न बने | आदमी को दान से सुख मिलता है और वह मानता है कि धन सबसे बड़ा सुख है । किन्तु धन मिला, समृद्धि बढ़ी तो वह दूसरों के लिए दुःख का कारण बन गया । एक धनवान व्यक्ति का नौकर अपने सेठ के घर से कचरा निकालता और पड़ोसी के दरवाजे के सामने जाकर डाल देता । उसने धनवान् पड़ोसी से शिकायत की कि यह तो अच्छी बात नहीं है | सेठ ने कहा- अच्छा बुरा क्या होता है, यह तो करने वाला जाने, नौकर की बात नौकर जाने। ऐसी धौंसपट्टी जमाई कि बेचारा कुछ बोल ही नहीं पाया । करता भी क्या ? वह लड़ तो सकता नहीं था । चुप हो गया । ऐसी समृद्धि जो स्वयं को सुख दे और दूसरों के लिए कठिनाई बन जाए,
जैन धर्म के साधना -सूत्र
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