________________
को उठाने का काम करती है, दूसरों को पछाड़ने में कभी नहीं लगती। जिन लोगों ने खूब डटकर खाया, खाने को ही परम कल्याण समझा, उनकी शक्ति सदैव दूसरों को पछाड़ने में ही लगी रही । भोजन - भट्टों ने कभी भी दुनिया के लोगों को उठाने का प्रयत्न नहीं किया, संकल्प भी नहीं किया। उनमें ऐसी ताकत भी नहीं आती, जो औरों को उठा सके । उन लोगों में सात्विक शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्होंने आहार का संयम करना सीखा, भोजन का नियन्त्रण सीखा, अपनी जीभ की लोलुपता को वश में किया। उनमें जो शक्ति जागी, वही शक्ति वास्तव में मंगल होती है ।
‘अरहंता मंगलं’- अर्हत् इसलिए मंगल हैं कि उनमें अनन्त शक्ति जाग जाती है, असीम शक्ति जाग जाती है। जब तक हम पदार्थ की सीमा से बंधे हुए हैं, पदार्थ की लोलुपता के साथ जुड़े हुए हैं, तब तक अनन्त शक्ति का जागरण नहीं हो सकता । यह अनंत और असीम शक्ति तब जागती है, जब हम अपने चैतन्य की सूक्ष्म शक्ति के साथ जुड़ जाते हैं। आज की हमारी बड़ी समस्या है कि हम स्थूल के साथ जुड़े हुए हैं, सूक्ष्म के साथ हम नहीं जुड़ते । हमारा एक बहुत विशाल जगत् है - सूक्ष्म जगत्, जिसे हम नहीं जानते। हम केवल स्थूल के साथ अपनी गाड़ी को घसीटे चले जा रहे हैं । आश्चर्य तो इस बात का होता है कि आज के इस वैज्ञानिक युग में भी हम अपनी दृष्टि को सूक्ष्म नहीं बना रहे हैं। जहां परमाणु का विस्फोट हो चुका, जहां सौर मंडल की रश्मियों का विश्लेषण हो चुका और उनके प्रभावों का वर्णन हो चुका, फिर भी हम सूक्ष्म की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं । एक बार सूर्य ग्रहण होने वाला था । सैकड़ों वैज्ञानिक उस ग्रहण का अध्ययन करने में जुटे हुए थे । विदेशों से सैकड़ों सैकड़ों वैज्ञानिक उन देशों में पहुंच गए जहां कि पूरा ग्रहण होने वाला था । ग्रहण के प्रभावों का कितनी सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाता है। पूरे ग्रहण के कितने प्रभाव होते हैं, किस प्रकार की रश्मियां आती हैं, किस प्रकार किरणों का विकिरण होता है और किस प्रकार मनुष्य उनसे प्रभावित होते हैं । निष्कर्ष निकाला गया- वे लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं, जिनका मस्तिष्क पहले से ही थोड़ा अस्त-व्यस्त या विक्षिप्त होता है । गर्भवती स्त्रियों पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है । लोगों की यह धारणा
I
चत्तारि मंगल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
११७
www.jainelibrary.org