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चत्तारि मंगलम्
अरहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवली पण्णत्तो धम्मो मंगलं ।
मंगल सूत्र का दूसरा परिच्छेद है- मंगल पाठ | यह जैन परम्परा में सबसे अधिक प्रचलित मंगल सूत्र है । प्रत्येक शुभ प्रवृत्ति के प्रारम्भ में इस मंगल सूत्र का उच्चारण और ध्यान किया जाता है । चार मंगल हैं- अर्हत्, सिद्ध, साधु और धर्म । नमस्कार महामंत्र में जहां पंचपरमेष्ठी मंगल है, वहां इस मंगल सूत्र में चार मंगल हैं । अर्हत्, सिद्ध और साधु-तीन वे ही हैं, जो नमस्कार महामंत्र में हैं, एक धर्म इसमें और जुड़ गया । वास्तव में धर्म ही मंगल होता है । मंगल केवल एक धर्म ही है । अर्हत् इसलिए मंगल हैं कि वे स्वयं धर्म बन जाते हैं । सिद्ध इसलिए मंगल हैं कि वे धर्म की साधना करते-करते धर्म को स्वभाव में बदल लेते हैं । साधु इसलिए मंगल हैं कि वे धर्म की साधना करते हैं । वास्तव में एक ही मंगल है-धर्म । अधर्म है अमंगल और धर्म है मंगल | गौतम स्वामी ने केशी स्वामी के प्रश्न के उत्तर में कहा-धर्म ही शरण है | धर्म ही द्वीप है आधार है, गति है, सब कुछ है । इस संसार में धर्म के सिवाय वास्तविक मंगल कोई भी नहीं है । पदार्थ
औपचारिक मंगल होते हैं । पदार्थों को मंगल माना जाता है और वे कुछ मंगलमय वातावरण का निर्माण भी करते हैं । किन्तु जब हम सूक्ष्म जगत् में प्रवेश कर स्थिति का विश्लेषण करते हैं तो पता चलता है कि धर्म के सिवाय दूसरा कोई भी तत्त्व मंगल नहीं है । कौन सा धर्म ?
प्रश्न होगा कि कौन-सा धर्म मंगल है । जैन धर्म, बौद्ध धर्म, वैदिक
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जैन धर्म के साधना-सूत्र
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