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धर्म और ईसाई धर्म - ये बहुत सारे धर्म हैं और छोटे-मोटे धर्मों की तो कोई गणना ही नहीं है । ये धर्म तो बड़े माने जाते हैं, उपधर्मों की तो कोई गणना ही नहीं है | प्रश्न स्वाभाविक है कि कौन-सा धर्म मंगल है ? किसको मंगल मानें ? क्या जैन धर्म को मंगल मानें ? जैन लोग कहेंगे- जैन धर्म को अवश्य मंगल माना जाए। किन्तु दूसरे धर्म वाले कहेंगे- यदि जैन धर्म मंगल है तो वैदिक धर्म मंगल क्यों नहीं ? एक विवाद खड़ा हो जाएगा। भगवान् महावीर ने एक उदार और व्यापक दृष्टिकोण से धर्म का प्रतिपादन किया, जिसमें धर्म के साथ कोई विशेषण नहीं जुड़ता । उन्होंने कभी नहीं कहा- जैन धर्म मंगल है या सबसे प्रधान है। सच तो यह है कि महावीर के समय में 'जैन धर्म' जैसा कोई नाम था ही नहीं । यह नाम तो महावीर के निर्वाण के सातआठ शताब्दियों के बाद प्रचलित हुआ है । उस समय इसको श्रमण धर्म या अर्हत् धर्म कहते थे, निर्ग्रन्थ प्रवचन कहते थे । निर्ग्रन्थ धर्म अर्थात् उन लोगों का धर्म, जिनके कोई ग्रन्थ नहीं है, कोई परिग्रह नहीं है, कोई गांठ नहीं है । इसका अर्थ होता है- आत्मा का धर्म । जब हम आत्मा का धर्म कहते हैं तो सारे विशेषण समाप्त हो जाते हैं । फिर यह विवाद नहीं होता कि कौनसा धर्म मंगल है ? यानी वह धर्म मंगल है, जो आत्मा का धर्म है । धर्म वस्तुतः आत्मा से भिन्न हो ही नहीं सकता । यदि हम उष्णता को अलग कर दें और आग को अलग कर दें तो क्या बचेगा ? अग्नि तभी अग्नि है, जब तक उसमें गर्मी है, दाहकता है, जलाने की शक्ति है । पानी में निर्मलता है, शीतलता है तो पानी है । यदि उसमें से ठंडकपन को हटा दें तो फिर वह पानी कहां रह जाएगा ?
निर्मलता पानी का धर्म है, ताप अग्नि का धर्म है, वैसे ही आत्मा का भी अपना धर्म है और वह है - ज्ञान, आनन्द, शक्ति । शक्ति आत्मा का धर्म है, आनन्द और ज्ञान आत्मा का धर्म है, इसलिए कहा जा सकता है कि शक्ति मंगल है, ज्ञान मंगल है और आनन्द मंगल है |
मंगल शक्ति
पूछा गया - कौन सी शक्ति मंगल है ?
चत्तारि मंगल
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