________________
मंगल की स्मृति
नमस्कार महामंत्र मंगल है। इसकी स्मृति मंगल की स्मृति है । इस एक मंत्र के आधार पर कितने मंगल मंत्र विकसित हुए हैं । नमस्कार महामंत्र से जुड़ा एक मंत्र है 'अर्हम्' । एक मंत्र है 'अ सि आ उ सा' । यह जयाचर्य का बहुत प्रिय मंत्र रहा है | नमस्कार से बना एक मंत्र है 'ओम्' | जैन आचार्यों ने 'ओम्' शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए लिखा है- अर्हत्, अशरीरी (सिद्ध) आचार्य, उपाध्याय, मुनि इनके आद्यक्षर से निष्पन्न होता है-ओम् । इस प्रकार नमस्कार मंत्र से जुड़े हुए पचासों मंत्र हैं, जो विघ्नो का निवारण करते हैं, ग्रहों के प्रभाव से बचाते हैं !
विघ्ननिवारक
हम जिस दुनिया में जी रहे हैं, उसमें अनेक प्रभाव हैं । प्रत्येक व्यक्ति को सौरमण्डलीय विकिरण प्रभावित करते हैं, इस भूमि के प्रकंपन प्रभावित करते हैं । जो व्यक्ति इन सबके बीच जीता है, पंच महाभूतों के साथ जीता है, पशु, पक्षी और मनुष्य से संकुल जगत् में जीता है, उस व्यक्ति के लिए विघ्न निवारण के उपायों को जानना आवश्यक हैं जैसे यह कहा गया है'पदे पदे निधानि' - पद-पद पर निधान हैं । वैसे ही यह भी कहा जा सकता है - ' पदे पदे विघ्नानि' - पद-पद पर विघ्न है । जो विघ्न - निवारण का सूत्र जान लेता है, नमस्कार महामंत्र का आलंबन लेता है, वह विघ्न-बाधाओं को दूर कर अपनी जीवन-यात्रा को मंगलमय बना सकता है । दुनिया में जितने मंगल हैं, उनमें सबसे बड़ा और प्रथम मंगल है - नमस्कार महामंत्र । इस आगम-वचन का मूल्यांकन करें, नमस्कार महामंत्र की सम्यक् आराधना करें, अव्याबाध सुख और शान्ति का अनुभव होगा ।
एसो पंच णमोक्कारो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
११३
www.jainelibrary.org