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मंत्र से सब पापों का नाश कैसे हो सकता है ? हम इस प्रश्न को दूसरे पहलू से देखें- इस मंत्र में बचा क्या है ? जो अच्छाई है, वह सब कुछ इसमें समाविष्ट है । दुनिया में श्रेष्ठ है ज्ञान, दर्शन, आनन्द और शक्ति । दुनिया में इससे अतिरिक्त कोई साधना-आराधना नहीं है, मंगल नहीं है । ज्ञान की उपासना, दर्शन की उपासना, आनन्द और शक्ति की उपासना-पाप को नष्ट करने का दुनिया में इससे अधिक कोई उपाय नहीं है । पाप क्या है ? सबसे बड़ा पाप है अज्ञान-अज्ञानं खलु कष्टं, क्रोधादिभ्योऽपि सर्वपापेभ्यः अदर्शन, दुःख
और निर्वीर्य होना- सबसे बड़ा पाप है | इन पापों के नाश का सूत्र है- ज्ञान का विकास, दर्शन का विकास, आनन्द और शक्ति का विकास | इस संदर्भ में बिल्कुल ठीक कहा गया-एसो पंच णमोक्कारो सव्वपावप्पणासणो- यह नमस्कार महामंत्र सब पापों का नाश करने वाला है | जितने पाप हैं, वे सारे इससे नष्ट हो जाते हैं।
भारतीय दर्शन में सबसे बड़ा पाप माना गया है अज्ञान या अविद्या । किसी वेदान्ती से पूछा जाए-- पाप क्या है ? उत्तर होगा-अविद्या । जैन दर्शन के विद्वान् से पूछा जाए-पाप क्या है ? उत्तर होगा-मिथ्या-दर्शन, अज्ञान । पाप तो यही है । झूठ, चोरी, हिंसा-ये पाप कहां हैं ? ये पाप के परिणाम हैं, फलश्रुतियां हैं । कारण है अविद्या, अज्ञान अथवा मिथ्यादर्शन । हिंसा प्रवृत्ति नहीं है, परिणाम है । झूठ प्रवृत्ति नहीं है, परिणाम है । यदि भीतर में अविद्या है, अज्ञान है तो हिंसा निकलेगी, झूठ की प्रवृत्ति होगी । यदि वह नहीं है तो न हिंसा की प्रवृत्ति होगी और न झूठ अथवा चोरी की घटना घटेगी।
आत्मा की आराधना
नमस्कार महामंत्र की आराधना महान् साधना है । अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और मुनि- इस पंच परमेष्ठी की आराधना आत्मा की आराधना है । पाप क्या है ? आत्मा से दूर होते जाना, इसका मतलब है पाप । आत्मा के निकट आते चले जाना, इसका मतलब है धर्म । अमंगल होता है बाहर जाने में । जैसे-जैसे आदमी बाहर जाता है, दूसरों से प्रभावित होता है वैसे-वैसे अमंगल की स्थितियां बनती जाती हैं। जैसे-जैसे व्यक्ति भीतर
एसो पंच गामोक्कारो
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