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________________ एसो पंच णमोक्कारो I " • मंगल भावना और मैत्री भावना - जीवन की महान् उपलब्धि है । व्यक्ति कितनी ही तपस्या करे, साधना और आराधना करे, यदि उसके अन्तःकरण में मंगल भावना और मैत्री भावना नहीं है तो सब व्यर्थ हो जाता है । नमस्कार महामंत्र मंगल है, मंगल की भावना का महामंत्र है । हम प्रातः काल उठते ही मंगल की भावना करें, सबके प्रति मंगल भावना करें। मंगल भावना का विकास होता है तो विघ्नों का निवारण होता है । मंगल है महामंत्र इस दुनिया में सब प्रकार के तत्त्व हैं । कृष्णलेश्या भी है, शुक्ललेश्या भी है। रजोगुण भी हैं, तमोगुण और सत्त्वगुण भी हैं । उत्कृष्टतम अच्छाई भी है और निकृष्टतम बुराई भी है । इष्ट करने वाले तत्त्व भी हैं और अनिष्ट करने वाले तत्त्व भी हैं । हम जिस दुनिया में जी रहे हैं, उसमें बाधा डालने वाले तत्त्वों की कमी नहीं है, इसलिए मंगल भावना जरूरी है और नमस्कार महामंत्र स्वयं मंगल है | नमस्कार महामंत्र के संदर्भ में कहा गया- यह महामंत्र सब पापों का नाश करने वाला है और सब मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है । एसो पंच णमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलम् ॥ पाप नाशक प्रश्न हो सकता है - क्या एक मंत्र से पापों का नाश हो जाएगा ? एक जैन धर्म के साधना -सूत्र ११० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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