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________________ करता है । आचरण के साथ ज्ञान और ज्ञान के साथ आचरण - यह है मुनित्व | इस दिशा में प्रस्थान हुआ । ज्ञान बढ़ता चला गया। कहा जाता है - सरस्वती दो, सरस्वती बढ़ेगी । लक्ष्मी दो, लक्ष्मी घटेगी । एक के विनिमय में लाभ है और दूसरे के विनिमय में हानि । बढ़ता है विचार, घटता है पदार्थ एक आदमी आया । उसने अपने मित्र से कहा- तुम्हारे पास जो रुपया है, वह मुझे दे दो और मेरे पास जो रुपया है, उसे ले लो | विनिमय किया । दोनों के पास रहा केवल एक-एक रुपया । Į एक आदमी आया । उसने अपने मित्र से कहा- मैं तुम्हें एक विचार देता हूं कि सदा अच्छे व्यक्तियों की संगत करो। तुम भी मुझे एक विचार दो । उसने कहा- सदा मीठा बोलो । प्रश्न हुआ कि दोनों व्यक्तियों के पास कितने विचार हुए ? दोनों के पास दो-दो विचार हो गए । रुपये का विनिमय किया तो दोनों के पास एक-एक रुपया ही रहा । विचार का विनिमय किया तो दोनों के पास दो-दो विचार हो गए । ज्ञान के विनिमय से ज्ञान बढ़ता है और पदार्थ के विनिमय से पदार्थ घटता है । आत्मज्ञ उस अनगार ने, निर्ग्रन्थ और, यति ने ज्ञान के क्षेत्र में इतना विकास किया कि वह सचमुच मुनि बन गया और इतना बड़ा ज्ञानी कि आत्मा को जानने वाला बन गया, आत्मज्ञ बन गया । उसके परिपार्श्व में अनेक नई बातें ज्ञात हुईं और इस मुनि की एक नई पहचान बन गई । ज्ञानी का सोचना और अज्ञानी का सोचना अलग-अलग होता है । चीन में एक प्रथा है । दो पक्षों में जब संघर्ष हो जाता है, तब उससे निबटने में कठिनाई होती है । दोनों का अपना आग्रह होता है। चीन के बादशाह ने एक तरीका निकाला। दोनों को बाजार में आने का निमंत्रण दे दिया । दोनों पक्षों के सैंकड़ों लोग एकत्रित हो गए, दो खेमे हो गए। मुख्य णमो लोए सव्व साहूणं Jain Education International For Private & Personal Use Only १०७ www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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