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उसे पारितोषिक देकर सन्तुष्ट करना है । राजा ने उसे एक भव्य मकान बनाने का आदेश दिया । ठेकेदार ने मकान बनाना प्रारंभ किया । उसने सोचाअब यह अन्तिम अवसर है । कुछ बचा लूंगा तो अच्छा है । उसके मन में बेईमानी आ गई। उसने मकान खड़ा कर दिया । ऊपर से साफ-सुथरा दिखने वाला मकान भीतर से खोखला था । उसने उसके निर्माण में काफी धन बचा लिया । राजा ने मकान देखा | भव्य इमारत को देखकर राजा प्रसन्न हुआ। उसने ठेकेदार के सम्मान में एक आयोजन किया । सभी सभासद तथा अन्यान्य संभ्रान्त नागरिक उस आयोजन में आए । राजा ने ठेकेदार के कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा- इस व्यक्ति की सेवाओं से मैं सन्तुष्ट होकर आज यह भव्य मकान इसको उपहार के रूप में दे रहा हूं। तालियों की गड़गड़ाहट से सभी ने राजा के वचन का अनुमोदन किया । राजा ने वह भव्य मकान ठेकेदार को सौंप दिया ।
ठेकेदार का मन खिन्न था । वह बाहर से प्रसन्न दिख रहा था किन्तु मन विषण्ण था- ओह ! मेरी मूर्खता ने मुझे ठग लिया । यदि मैं बेईमानी नहीं करता तो...... ।
यही दशा उन सबकी होती है, जो आत्मा से दूर चले जाते हैं, पदार्थों में उलझ जाते हैं । अन्त में उन्हें अनुताप, मानसिक संताप झेलना पड़ता है।
समाधान है अध्यात्म विद्या
विद्याओं में अध्यात्मविद्या सार है । यही एकमात्र शांति का उपाय है । यही अन्तिम शरण है । जो इस सचाई को जान जाता है, वह सुखी बन जाता है, शान्त बन जाता है। ___ परिवार का एक सदस्य चल बसा । वर्षों के बाद भी माता-पिता को उसकी याद सताती रहती है । याद आते ही उन्हें रुलाई आ जाती है। इसका कारण है कि वे इस सचाई को नहीं जानते कि संयोग के साथ वियोग जुड़ा रहता है । 'संयोगाः विप्रयोगान्ताः ।' जो संयोग को शाश्वत मान लेता है, वह धोखा खाता है । आत्मविद्या का ज्ञाता कभी संयोग को शाश्वत नहीं मानता । जिसका संयोग होता है, उसका वियोग निश्चित है । आत्मविद्या
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जैन धर्म के साधना-सूत्र
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