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________________ का हृदय, तात्पर्यार्थ और ऐदंपर्यार्थ मिलता है तब किसी शब्द की आत्मा को पकड़ा जा सकता है । भटकाव का हेतु यह स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं है कि आज आत्मविद्या के विकास में कमी आई है । जितने धर्म सम्प्रदाय हैं, वे लौकिक विद्याओं के प्रति झुके हुए हैं। आत्मविद्या की उन्मुक्तता भी कम है । आत्मविद्या के रहस्य भी बहुत कम जाने जाते हैं । विरल लोग हैं, जो इस विद्या के रहस्यों को जानते हैं इसीलिए भारत की जो मूल विद्या थी, वह लुप्त होती चली गई । आज आकर्षण का विषय है लौकिक विद्याएं अथवा चमत्कारी विद्याएं । जनता का आकर्षण भी चमत्कार में है इसलिए धर्म के लोग भी चमत्कार की दिशा में अधिक लगे हुए हैं । आत्मविद्या की दिशा में प्रस्थान करने वाले लोग बहुत कम हैं । जब अस्तित्व का बोध सुरक्षित नहीं रहता, आत्मा के बारे में हमारी जानकारी कम होती है । आज जो भ्रम है, व्यामोह है, अटकाव या भटकाव है, उसका हेतु है - आत्मा के बारे में हम जानते नहीं हैं। जब आत्मा के बारे में ज्ञान नहीं होता, तब कोई भी भटका सकता है, भुलावे में डाल सकता है | | दिल्ली महानगर का स्टेशन था । अनेक गाड़ियां खड़ी थीं, टिकट चेकर एक गाड़ी में घुसा और टिकट चेक करने लगा । उसने लोगों से कहा- तुम गलत गाड़ी में बैठ गए हो । लोग गाड़ी से उतरने शुरू हो गये । लोगों से भरी गाड़ी प्रायः खाली हो गई । एक आदमी अन्तर्दृष्टि संपन्न था । उसने कहा- 'टिकट बाबू ! मैं पूरी जांच-पड़ताल कर इसमें बैठा हूं। मैं गलत नहीं हूं। तुम गलत हो, गाड़ी गलत नहीं है । तुम गलत गाड़ी में टिकट चेक करने आ गए ।' यह सुनकर टिकट चेकर चौंका । उसने ध्यान दिया । उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि वह गलत गाड़ी के टिकट चेक कर रहा है । सभी यात्री टिकट चेकर के कहने पर गाड़ी से उतर गए थे। वे गलत नहीं थे, गलत था टिकट चेकर | णमो उवज्झायाणं Jain Education International For Private & Personal Use Only ९७ www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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