________________
प्रायः गोचरी करते । बराबर पुरुषार्थ चलता रहा, कभी शक्ति का गोपन नहीं किया । आचार्य भिक्षु के सामने भगवान् महावीर का यह अनुभवपूरित वचन था-णो णिहेज्ज वीरियं- शक्ति का गोपन मत करो, शक्ति को छिपाओ मत । शक्ति का पूरा उपयोग करो | यह मत सोचो -अभी शक्ति ज्यादा काम में लेंगे तो बुढ़ापे में क्या होगा ? यदि ऐसा सोचोगे तो शक्ति का स्रोत सूख जाएगा । शक्ति को काम में लेते रहेंगे तो वह बनी रहेगी । शक्ति का सम्यग् उपयोग करना और करवाना आचार्य का दायित्व है । इस दायित्त्व का निर्वहन करने वाला आचार्य संघ और शासन की तेजस्विता बढ़ा देता है ।
आचार्य का दायित्व
आचार्य वह होता है, जो इन पांच आचारों का सजगता के साथ स्वयं पालन कराता है और दूसरों से पालन करवाता है इसीलिए उसका दायित्व बड़ा है । एक मुनि का दायित्व आचार का सम्यक् पालन करना है । किन्तु पालन करवाना उसका अनिवार्य दायित्व नहीं है । कोई उस दायित्व को निभाए या न निभाए, प्रेरक बने या न बने, पर आचार्य का यह भार है इसीलिए गुरु भारी बने हैं । आज गुरु शब्द प्रचलित हो गया । वस्तुतः आचार्य शब्द अधिक सार्थक है । गुरु में अर्थान्तर हुआ है, अर्थ का विकास हुआ है । गुरु शब्द इस तात्पर्य में प्रयुक्त हुआ है कि उसे दूसरों का इतना बड़ा भार उठाना होता है । दूसरों के भार को उठाना, इससे बड़ा कोई भार नहीं है । एक व्यक्ति एक क्विंटल वजन की बोरी उठा सकता है किन्तु एक पचास किलो के आदमी का वजन उठाना मुश्किल हो जाता है । दूसरों को निभाना, अपने मन के अनुकूल चलाना बड़ी समस्या है । हजारों लाखों व्यक्तियों की श्रद्धा का भार उठाना गुरुतर दायित्व है और आचार्य इस दायित्व का निर्वहन करता है ।
इन पांच आचारों का वर्गीकरण करें तो कहा जा सकता है-अपायज्ञ, उपायज्ञ, ज्ञान दर्शन और चारित्र की संपन्नता, इनका समवाय है आचार्य । इस शक्तिशाली पद की वंदना का स्वर है-'णमो आयरियाणं ।'
णमो आयरियाणं
९५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org