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चरित्र आचार
आचार का तीसरा आयाम है चरित्र । आचार्य पांच महाव्रत,पांच समिति और तीन गुप्ति में स्वयं सजग रहता है और दूसरों को सजग बनाए रखता है । चरित्र का तात्पर्य है आचरण की पवित्रता ।
तप आचार ____ आचार का चौथा आयाम है-तप आचार । आचार्य स्वयं तपस्वी होता है और संघ को भी तप के लिए प्रेरित करता रहता है । तपस्या का अर्थ केवल उपवास ही नहीं है। जिस प्रकार वह तपस्या एक साधन है उसी प्रकार विनय, सेवा, स्वाध्याय, ध्यान आदि तपस्या के साधन हैं । जो संघ तपस्वी नहीं होता, वह चिरजीवी नहीं हो सकता । चिरजीवी वही होगा, जो तपस्वी होगा | व्यवहार के क्षेत्र में देखा गया है- जो एक अवस्था के बाद एकांतर तप शुरू कर देता है, सचमुच उसकी आयु बढ़ जाती है, वह चिरजीवी बन जाता है। आहार का असंयम, इन्द्रियों का असंयम जीवन को घटाता है । यह असंयम असमय में मौत का ग्रास बना देता है । त्याग और तपस्या-दोनों चिरजीवन देने वाले हैं । धार्मिक, सामाजिक अथवा राजनैतिक संगठन की चिरजीविता का रहस्य सदस्यों के त्याग तपस्यामय जीवन में छिपा होता है। जहां भोग, सुख-सुविधा और आराम का दृष्टिकोण प्रबल बनता है, वहीं संगठन का अधःपतन शुरू हो जाता है । संघ की तेजस्विता का सूत्र है तपस्या । इसका अनुशीलन और अनुपालन आचार्य का सहज स्वीकृत दायित्व है ।
वीर्य आचार
आचार का पांचवा आयाम है- वीर्य आचार | सब आचारों की रीढ़ है- वीर्य आचार | रीढ़ की हड्डी स्वस्थ है तो पूरा शरीर स्वस्थ । रीढ़ की हड्डी की अस्वस्थता शरीर-तंत्र को अस्वस्थ बना देती है । व्यक्ति अपनी शक्ति का गोपन न करे । तेरापंथ परम्परा की यह विशेषता रही कि इसके आचार्य वीर्यवान् रहे हैं । आचार्य भिक्षु का जीवनवृत्त पढ़ें । उनका वीर्य कितना प्रखर था । जीवन के अंतिम दिनों में खड़े-खड़े प्रतिक्रमण करते, स्वाध्याय करते,
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जैन धर्म के साधना-सूत्र
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