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________________ जाती है । केवल 'सिद्धा' मंत्र का प्रयोग अलग-अलग समय में अनेक तरीकों से किया जाता है । सूर्योदय के समय वह अलग प्रकार से और सायंकाल के समय वह अलग प्रकार से होता है । निश्चित श्रृंखला में भी उसका जप किया जाता है। योगीन्दु का कथन योगीन्दु जैन परम्परा के महान् योगी हुए हैं । उन्होंने एक दोहा कहा है, वह इस संदर्भ में आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत मार्मिक है 'जसु अब्भिन्तरि जग बसइ, जग अन्भिन्तरि सोई । भगवन् ! आपमें तीनों लोक बसते हैं और आप तीनों लोक में बस रहे हैं । यद्यपि जैन दर्शन आकार की दृष्टि से परमात्मा को व्यापक नहीं मानता किंतु ज्ञान की दृष्टि से व्यापक भी मानता है । सिद्ध का ज्ञान तीन लोक को अपना विषय बनाता है इसलिए वह तीनों लोकों में रहता है और उसके ज्ञान में तीनों लोक प्रतिबिम्बित हो रहे हैं । इस संदर्भ में कबीर का यह कथन संगत प्रतीत होता है- निर्गुण में गुण, गुण में निर्गुण । जैसे गुण में निर्गुण है और निर्गुण में गुण है वैसे ही तीनों लोक में आप और आपमें तीनों लोक हैं । यह महत्त्व सिद्ध की उपासना का आधार रहा है । सिद्ध का मंत्र शक्तिशाली है, इसका एक रहस्य यह है- इस मंत्र के साथ एक विराट् भावना जुड़ी हुई है, विराट् आधार जुड़ा हुआ है । हम प्रबल भावना के साथ, समग्र कल्पना और अखिल विशेषताओं के साथ तादात्म्य स्थापित करें, ‘णमो सिद्धाणं' की उपासना करें, जप और ध्यान करें। यह मंत्र शक्ति और सिद्धि देने वाला है, इसमें कोई संदेह नहीं है । णमो सिद्धाणं Jain Education International arnational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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