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साधु प्रकरण
प्रश्न २३६. साधु साध्वियों का स्पर्श किस परिस्थिति में कर सकते हैं? उत्तर-पांच कारणों से साधु साध्वियों का स्पर्श कर सकते हैं-१. सांड आदि
पशु एवं गीध आदि पक्षी साध्वी को मार रहे हों। २. दुर्ग या किसी विषमस्थान से साध्वी गिर रही हो। ३. साध्वी कीचड़ या दलदल में फंसी हुई हो अथवा नदी आदि के जल में बह रही हो। ४. साध्वी नाव पर चढ़ रही हो या उससे उतर रही हो। ५. साध्वी राग, भय या अपमान से शून्यचित्तवाली हो, सम्मान से हर्षोन्मत्त हो, यक्षाधिष्ठित हो, (भूत आदि लगा हुआ हो) उसके ऊपर उपसर्ग आये हों, यानि चोरों या दुष्टपुरुषों द्वारा संयम से डिगाई जा रही हो, कलह करके खमाने के लिए
आई हो, प्रायश्चित्त आने से घबराई हुई हो अथवा अनशन-संथारा कर रखा हो।' प्रश्न २४०. गृहस्थों द्वारा साधु-साध्वियों की सेवा से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-यहां सेवा शब्द का अर्थ पैर दबाना आदि नहीं है। सेवा का अर्थ है
उपासना करना। उपासना का शाब्दिक अर्थ है पास में बैठकर धार्मिक
चर्चा करना, ज्ञान सीखना आदि। प्रश्न २४१. उपासना से लाभ क्या है ? उत्तर-आचार्यश्री या साधु-साध्वियों के पास बैठने से तत्त्वचर्चा करने और सुनने
का अवसर मिलता है, उससे ज्ञान बढ़ता है। ज्ञान का जीवन में आचरण होता है। ज्ञान और क्रिया से मुक्ति मिलती है। इस प्रकार उपासना का
फल मिल जाता है। प्रश्न २४२. शबल दोष का क्या अर्थ है ? उत्तर-शबल का अर्थ है, ग्रहण किए हुए मूल-उत्तर-गुणों में दोष रूप धब्बा लग
जाना अर्थात् चारित्र का दूषित हो जाना। उत्तरगुणा में अतिक्रम-व्यतिक्रम-अतिचार-अनाचार चारों दोषों का लगना शबल दोष है एवं मूलगुणों में अनाचार के अतिरिक्त तीनों दोषों
का लगना शबल दोष है। प्रश्न २४३. शबल दोष के कितने प्रकार हैं? उत्तर-शबल दोष इक्कीस कहे गए हैं जिनका सेवन करने वाले साधुओं का
संयम शबल अर्थात् दोष के धब्बों वाला बन जाता है१. स्थानांग ५/२/१६५
(ख) समवाओ २१/१ २. (क) दसाओ २/३
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