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साध्वाचार के सूत्र
हैं, दीक्षा दे सकते हैं एवं विसंयोगी कर सकते हैं तथा विशेष परिस्थितिवश (अपवादमार्ग में) एक साथ भी रह सकते हैं एवं एक-दूसरे का स्पर्श भी कर सकते हैं।
प्रश्न २३६. साधु को विसांभोगिक (गण से बाहर) क्यों किया जाता है ? उत्तर-विसांभोगिक करने के पांच कारण निर्दिष्ट हैं - १. अकृत्य कार्य करने पर । २. अकृत्य कार्य करके उसकी आलोचना न करने पर । ३. आलोचना करके भी गुरु द्वारा दिये गये प्रायश्चित्त का पालन न करने पर । ४. गुरु द्वारा दिये गये प्रायश्चित्त का पालन शुरू करके भी उसे न निभाने पर । ५. स्थविरकल्पिक साधुओं के आचार में जो विशुद्ध आहार शय्यादि कल्पनीय है एवं जो मासकल्प की मर्यादा है, उसका अतिक्रमण करके समझाने पर भी 'मैं तो ऐसे ही करूंगा गुरुजी मेरा क्या कर सकते हैं' यों उच्छृंखलता दिखलाने पर ।
आगम में कहा गया है कि आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, कुल, गुण, संघ, ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र इन नौ के प्रत्यनीक (विशुद्ध आचरण करने वाले) व्यक्तियों को विसांभोगिक किया जा सकता है।
प्रश्न २३७. साधु-साध्वियों को प्रत्यक्ष रूप में विसांभोगिक किया जाता है
या परोक्ष ?
उत्तर - साधु साधु को एवं साध्वी साध्वी को विसांभोगिक करना चाहें तो उन्हें प्रत्यक्ष उनके दोषों का दिग्दर्शन करा कर सम्बन्ध-विच्छेद करना चाहिए किन्तु परोक्ष रूप में नहीं। यदि साधु साध्वी का सम्बन्ध-विच्छेद करे तो प्रत्यक्ष रूप में उक्त कार्य नहीं कल्पता, साध्वी के द्वारा करवाना चाहिए । इसी प्रकार यदि साध्वी साधु का सम्बन्ध -1 -विच्छेद करे तो उसे भी प्रत्यक्ष न करके किसी साधु द्वारा करवाना चाहिए । सम्बन्ध विच्छेद करते समय यदि दोषी साधु-साध्वी प्रायश्चित्त लेना स्वीकार करें एवं भविष्य में शुद्ध संयम पालने का आश्वासन दें तो उन्हें गण से बाहर करना नहीं कल्पता । प्रश्न २३८. साधु-साध्वियां एक साथ किस परिस्थिति में रह सकते हैं ? उत्तर - आगम में कहा है कि बीहड़ जंगल में, सूने मन्दिर में, चोर डाकू अथवा व्यभिचारियों का भय उपस्थित होने पर साध्वियों की रक्षा के लिये साधु उनके साथ रह सकते हैं । *
१. व्यवहार ७११ २. स्थानांग ६ / ६६१
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३. व्यवहार ७/४-५ ४. स्थानांग ५/२/१०७
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