________________
साधु प्रकरण
८. विधियुक्त वन्दना करना कृतिकर्मसंभोग है ।
९. आहार-उपधि आदि देना, मलमूत्रादि परठना एवं वृद्ध आदि साधुओं की सेवा करना वैयावृत्त्यसंभोग है।
१०. शेषकाल चातुर्मास या स्थिरवास आदि में इकट्ठे होकर रहना समवसरणसंभोग है ।
५३
११. आसन आदि का देना संनिषद्यासंभोग है
१२. पांच प्रकार की कथा के लिये एक जगह बैठकर व्यवहार करना कथाप्रबन्धसंभोग है ।
प्रश्न २३३. पांच प्रकार की कथा कौन-कौन सी है तथा उनसे क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-१. वादकथा–पांच अथवा तीन अवयव वाले अनुमानवाक्य द्वारा छल और जाति आदि को छोड़कर किसी मत का समर्थन करना वाद कथा है । २. जल्पकथा - दूसरे को पराजित करने के लिये, जिसमें छल, जाति एवं निग्रहस्थान का प्रयोग हो, उसे जल्पकथा कहते हैं ।
३. वितण्डाकथा—एक का पक्ष लेकर दूसरे का दोष बताते हुए खण्डन करना वितण्डाकथा है ।
४. प्रकीर्णकथा - साधारण बातों की चर्चा करना प्रकीर्ण
-कथा है 1
५. निश्चयकथा - अपवाद विषयक बातों की चर्चा करना निश्चयकथा है । " प्रश्न २३४. अन्य सांभोगिक कौन होते हैं ?
उत्तर- उपरोक्त विवेचन के अनुसार जिसके साथ बारह संभोगों में कतिपय संभोगों का संबंध रखा जाता है, वे अन्य सांभोगिक कह जाते हैं । कतिपय संभोगों का व्यवहार उन्हीं के साथ होता है जो एक दूसरे को साधु मान अपने-अपने विधानानुसार केशी स्वामी ने गोतम स्वामी को बैठने के लिए तृण, दर्भ, आदि दिये किन्तु आहार पानी का लेन-देन नहीं किया इसलिए उनके साथ कतिपय संभोग थे ।
प्रश्न २३५. क्या साधु-साध्वियों के आपस में बारह संभोग होते हैं ? उत्तर- हां! साधु-साध्वियों को परस्पर सांभोगिक कहा है। वे एक-दूसरों के साथ यथाविधि सभी संभोग कर सकते हैं यानी आपस में उपधि- आहार आदि ले-दे सकते हैं, पढ़ सकते हैं, साथ बैठकर स्वाध्याय - व्याख्यान कर सकते
१. समवाय १२ / २ / टि. २
२. उत्तरा २३/११५-१६/१७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org