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साधु प्रकरण प्रश्न २२७. संयम को पुष्ट करने वाले अठारह स्थान कौन-कौन से हैं? उत्तर-१-६, व्रतषट्क-पांच महाव्रत तथा छठा रात्रिभोजन व्रत ७-१२.
कायषट्क-छह काय की हिंसा के त्याग १३. अकल्पनीय आहारादि का त्याग १४. गृहस्थ के बर्तन में भोजन करने का त्याग १५. पल्यङ्कादिआसन पर बैठने-सोने का त्याग १६. गृहस्थ के घर (रसोई आदि में) बैठने का त्याग १७. स्नान करने का त्याग १८. शोभा-विभूषा करने का त्याग-संयम की रक्षा के लिए इन अठारह स्थानों (नियमों) का पालन करना परम आवश्यक है। जो इनमें से किसी एक नियम का भी भंग
करता है, वह मुनि संयम से भ्रष्ट हो जाता है।' प्रश्न २२८. साधुओं का रहन-सहन कैसा होता है? उत्तर-साधु निर्मम, निरहंकार, निःसंग और गौरवरहित होते हैं। वे त्रस-स्थावर
सभी प्रकार के जीवों पर समभाव रखते हैं। वे लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निन्दा-प्रशंसा तथा मान-अपमान में समान वृत्ति रखते हैं। वे कषाय, दण्ड, शल्य, भय, हास्य और शोक से निवृत्त होते हैं तथा निदान एवं बन्धन से मुक्त होते हैं। वे इहलोक-परलोक के सुखों की इच्छा नहीं रखते। उन्हें चाहे बसोले से काटा जाए या चन्दन से चर्चा जाए तथा
आहार मिले या न मिले, वे समभाव में रहते हैं। प्रश्न २२६. क्या साधुओं के सुख की तुलना देवता के सुखों से की जाती
उत्तर-संयम में रमण करने वाले साधुओं के सुख देवलोक के सुखों के समान
हैं। एक मास का दीक्षित साधु व्यन्तर देवों के सुखों का व्यतिक्रमण करता है अर्थात् उनसे अधिक सुखी होता है। दो मास का दीक्षित असुरेन्द्रवर्णित-भवनपतिदेवों के सुखों का, तीन मास का दीक्षित असुरकुमार देवों के सुखों का, चार मास का दीक्षित ग्रह-नक्षत्र-ताराओं के सुखों का, पांच मास का दीक्षित चन्द्र-सूर्य के सुखों का, छह मास का दीक्षित प्रथम-द्वितीय स्वर्ग के सुखों का, सात मास का दीक्षित तीसरेचौथे स्वर्ग के सुखों का, आठ मास का दीक्षित पांचवें छठे स्वर्ग के सुखों का, नव मास का दीक्षित सातवें-आठवें स्वर्ग के सुखों का, दस मास का
दीक्षित ग्यारहवें-बारहवें स्वर्ग के सुखों का, ग्यारह मास का दीक्षित १. (क) समवाओ १८/३
३. दसवें चूलिका प्रथम गाथा १० (ख) दसवे. ६/७
४. भगवती १४/8 २. उत्तरा. १६/६०-६४
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