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साध्वाचार के सूत्र ६. स्थविर-आचार्य-गुरु आदि पूज्यजनों के महत्त्व का (आचार तथा शील में असदोषारोपण करके) उपहनन करना।
७. निष्प्रयोजन अथवा ऋद्धि, रस एवं साता-गौरव के वश, विभूषा के निमित्त तथा आधाकर्मादि आहार ग्रहण कर अथवा हिंसात्मक भाषण कर जीवों की हिंसा करना। ८. प्रतिक्षण अर्थात् बात-बात में क्रोध करना। ९. किसी के साथ कलह हो जाने पर उसे उपशांत न करना। १०. पीठ पीछे निन्दा-चुगली करना। ११. शंकायुक्त पदार्थों के विषय में बार-बार निश्चयकारी वचन बोलना। १२. नए-नए झगड़ों को उत्पन्न करना। १३. क्षमापना द्वारा उपशांत किए हए पुराने झगड़ों को पुनः उठाना। १४. अकाल में आगमों का स्वाध्याय करना। १५. भिक्षादाता गृहस्थ के हाथ-पैर सचित्त रजकणों से युक्त होने पर भी उससे भिक्षा लेना अथवा स्थंडिलभूमि से आकर पैरों का प्रमार्जन किए बिना आसन पर बैठना। १६. प्रहर रात्रि के बाद (लोगों के सोने का समय होने पर) ऊंचे स्वर से व्याख्यान-स्वाध्याय आदि करना तथा दिन में भी किसी रोगी को कष्ट हो इस प्रकार जोर से बोलना। १७. गण में भेद डालने वाले वचन बोलना एवं कार्य करना। १८. कलह पैदा करना। १९. सूर्योदय से सूर्यास्त तक भोजन करते रहना। (दिन भर मुंह चलाना)। २०. एषणासमिति का ध्यान न रखना अर्थात् अनेषणीय-आहारादि
लेना। प्रश्न २२५. समाधि स्थान क्या है? उत्तर-आत्मा का सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप मोक्ष मार्ग में रमण करना समाधि
स्थान है। प्रश्न २२६. असमाधिस्थान से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-अज्ञान-मिथ्यात्व-दुश्चारित्र में प्रवृत्त होना असमाधिस्थान है। १. (क) दसाओ १/३
(ख) समवाओ २०/१
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