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साधु प्रकरण
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वस्त्र-पात्र एवं शय्या को ग्रहण करना। २. उत्पादनोपघात-उत्पादना के धात्री आदि सोलह दोषयुक्त आहारादि लेना। ३. एषणोपघात-एषणा के शंकितादि दस दोषों से युक्त आहारादि लेना। ४. परिकर्मोपघात-वस्त्र आदि को आगमविधि के अनुसार साधुओं के योग्य बनाना परिकर्म है एवं विधि का उल्लंघन करना।
५. परिहरणोपघात-परिहरण का अर्थ सेवन करना है। अकल्पनीय उपकरण, वसति एवं आहार का सेवन करना। ६. ज्ञानोपघात-ज्ञान पढ़ने में प्रमाद करना। ७. दर्शनोपघात-दर्शन-सम्यक्त्व में शङ्का-काङ्क्षा-विचिकित्सा आदि करना। ८. चारित्रोपघात-पांच समिति, तीन गुप्ति एवं पांच महाव्रतों में दोष लगाना। ९. अप्रीतिकोपघात-गुरु आदि में पूज्यभाव न रखना तथा उनकी विनयभक्ति न करना।
१०. संरक्षणोपघात-वस्त्र-पात्र एवं शरीरादि में ममत्व रखना।' प्रश्न २२३. साधु जीवन में क्लेश उत्पन्न करने के कौन-कौन से कारण हैं? उत्तर-क्लेश के दस कारण माने गए हैं:-१. उपधि-वस्त्र पात्रादि उपकरण २.
उपाश्रय रहने का स्थान ३. कषाय-क्रोधादि, ४. भक्त-पान (आहार
पानी),५. मन, ६. वचन, ७. काया, ८. ज्ञान, ९. दर्शन, १०. चारित्र । प्रश्न २२४. संयम जीवन में असमाधि के कारण कौन-कौन से है? उत्तर-१. ईर्यासमिति का ध्यान न रखते हुए जल्दी-जल्दी चलना।
२. रात के समय या अंधेरे में (दिन के समय भी) बिना पूंजे चलना, बैठना, सोना एवं उपकरणादि लेना-रखना वाला। ३. अयोग्य रीति से पूंजना अर्थात् एक जगह पूंज कर दूसरी जगह पैर आदि धरना। ४. प्रमाण से अधिक मकान एवं पाट-बाजोटादि आसन रखना (अधिक रखने से पडिलेहणा आदि अच्छी तरह नहीं होती)। ५. गुरु आदि वृद्धों के सामने असभ्यता से बोलना।
१. स्थानांग १०/८४
२. स्थानांग १०/८६
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