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________________ ४८ साध्वाचार के सूत्र धर्म पालन में उपकारक होती है। इसी प्रकार भेड़ आदि त्रस जीव भी (जिनको ऊन से कम्बल आदि बनते हैं) अनेक प्रकार से संयम पालन में सहायक होते हैं। (२) गण-गुरु के परिवार को गण या गच्छ कहते हैं। गण में रहने वाले साधु को अन्य साधुओं के विनय से विपुल-निर्जरा होती है। सारणा-वारणा आदि से दोषों की प्राप्ति नहीं होती तथा गण के साधु धर्मपालन में एकदूसरों की सहायता करते हैं। (३) राजा-राजा दुष्टपुरुषों से साधुओं की रक्षा करता है अतः वह धर्मपालन में सहायक है। (४) गृहपति-(शय्यादाता) रहने के लिए स्थान देने से संयम का उपकारी (५) शरीर-धार्मिक क्रिया-अनुष्ठानों का पालन शरीर द्वारा ही होता है अतः यह भी धर्म का सहायक है। प्रश्न २२०. समाधिपूर्वक संयम की आराधना कैसे हो सकती है ? उत्तर-आगम में साधुओं के लिए चार सुखशय्याएं अर्थात् संयम में सुख से शयन (रमण) करने के चार कार्य कहे हैं।' १. वीतराग वाणी पर दृढ़ श्रद्धा एवं प्रतीति रखना पहली सुखशय्या है। २. दूसरे साधुओं से लाभ की आशा-वांछा न करना यानि अपने लाभ में सदा संतुष्ट रहना दूसरी सुखशय्या है। ३. देवों एवं मनुष्यों संबंधी काम-भोगों की अभिलाषा न करना तीसरी सुखशय्या है। ४. आभ्युपगमिकी एवं औपक्रमिकी वेदना उत्पन्न होने पर तीर्थंकरों की घोर तपस्याओं के कष्टों को याद करते हुए तीव्र वेदना को समभाव से सहन करना चौथी सुखशय्या है। प्रश्न २२१. उपघात किसे कहते हैं ? उत्तर-संयम की रक्षा के लिए साधु द्वारा ग्रहण की जाने वाली अशन-पान वस्त्र-पात्र आदि वस्तुओं में किसी प्रकार का दोष होना उपघात कहलाता प्रश्न २२२. दस उपघात का संक्षिप्त परिचय क्या है? । उत्तर-१. उद्गमोपघात-उद्गम के आधाकर्मादि सोलह दोष लगाते हुए आहार१. स्थानांग ४।३।४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003051
Book TitleSadhwachar ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnishkumarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size6 MB
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