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साधु प्रकरण
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स्नेह (कामरागादि की स्निग्धता) से मुक्त है। २. शंखवत् उज्ज्वल हैं। उन पर सांसारिक मोहमाया का रंग नहीं चढ़ता। ३. परभव जानेवाले जीव की गतिवत् बिना रोकटोक विचरने वाले हैं। ४. अन्य धातुओं के मिश्रण से रहित अप्रतिबद्ध जातरूप अर्थात् गृहीत चारित्र को निरतिचार पालनेवाले हैं एवं दर्पणपट्ट के समान प्राकृत-प्रतिबिम्ब वाले हैं। ५. कछुए के समान निग्रही पांच इन्द्रियों का गोपन करने वाले हैं। (कछुआ चार पैर, एक गर्दन-इन पांचों को ढाल द्वारा सुरक्षित रखता है)। ६. कमलपत्रवत् निर्लेप हैं। ७. आकाशवत् निरालम्ब रूप से विचरने वाले हैं। ८. वायु के समान निरालय-अप्रतिबन्धविहारी हैं। ९. चन्द्रमा के समान- सौम्य कान्ति वाले हैं। १०. सूर्य के समान दीप्त तेज वाले हैं। ११. समुद्र के समान गंभीर हैं (हर्ष-शोक में उनका चित्त विकृत नहीं होता)। १२. पक्षी के समान विप्रयुक्त (नियतवास व स्वजनादि के बंधनों से रहित) हैं। १३. मेरुपर्वत के समान अडोल (अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्गों में अविचलित) हैं। १४. शरदऋतु के जल की तरह निर्मल हृदय वाले हैं। १५. भारण्डपक्षीवत् अप्रमत्त हैं। १६. गैंडे के (एक ही सींग होता है) श्रृंगवत् रागद्वेष-रहित एकाकी रूप में विचरने वाले हैं। १७. हाथी के समान शूर हैं-कषायादि भावशत्रुओं को जीतने में समर्थ हैं। १८. वृषभवत् जातस्थाम अर्थात् ग्रहण किये हुए संयमभार को जीवनपर्यन्त निभानेवाले हैं। १९. सिंह के समान दुर्धर्ष अर्थात् परीषहादि मृगों से नहीं हारने वाले हैं। २०. पृथ्वी के समान सहिष्णु हैं-सभी स्पर्शों को समभाव से सहने वाले हैं। २१. घृत आदि से अच्छी तरह हवन की हुई अग्निवत् ज्ञान और तप रूप
तेज से जाज्वल्यमान हैं।' प्रश्न २१६. संयम धर्म का पालन करने में साधुओं को किसका सहारा
अपेक्षित रहता है ? और क्यों रहता है ? उत्तर-हां! साधु इन पांचों के सहारे से संयम का पालन करते हैं अर्थात
श्रुतचारित्रधर्म का पालन करने में ये पांच आधार भूत हैं।
(१) छह काय-पृथ्वी आधार रूप है। वह सोने-बैठने उपकरण रखनेपरठने आदि क्रियाओं में उपकारक है। जल पीने या वस्त्र-पात्रादि धोने के काम आता है। आहार-गर्म पानी आदि में अग्निकाय का उपयोग है। वायु की जीवन के लिए अनिवार्य आवश्यकता है। संथारा-पात्र दण्ड
वस्त्र-पीठ-पट्ट आदि उपकरण तथा आहार-औषधि आदि द्वारा वनस्पति १. औपपातिक सूत्र के समवसरणाकिार २. स्थाना. ५/३/१६२
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