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साधु प्रकरण
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प्रश्न १८४. यथाख्यात चारित्र में कितने ज्ञान पाये जाते हैं? उत्तर-पांच ज्ञान–१. मतिज्ञान २. श्रुतज्ञान ३. अवधिज्ञान ४. मनःपर्यवज्ञान ५.
केवलज्ञान। प्रश्न १८५. यथाख्यात चारित्र में शरीर कितनी पाये जाते हैं? उत्तर-तीन शरीर-औदारिक, तैजस, कार्मण।। प्रश्न १८६. यथाख्यात चारित्र में कितनी लेश्याएं पाई जाती हैं? उत्तर-एक-परम शुक्ल लेश्या, चौदहवें गुणस्थान में लेश्या नहीं।' प्रश्न १८७. यथाख्यात चारित्र में कितने समुद्घात होते हैं? उत्तर-एक-केवली समुद्घात । प्रश्न १८८. यथाख्यात चारित्र का साधक उत्कृष्ट कितने पूर्व का ज्ञाता
होता है? उत्तर-उत्कृष्ट १४ पूर्व का (ग्यारहवें, बारहवें गुणस्थान की अपेक्षा)। प्रश्न १८६. यथाख्यात चारित्र कितने भवों में प्राप्त हो सकता है? उत्तर-जघन्य एक भव, उत्कृष्ट तीन भव। प्रश्न १६०. यथाख्यात चारित्र एक भव की अपेक्षा कितनी बार प्राप्त हो
सकता है? उत्तर-जघन्य एक बार, उत्कृष्ट दो बार । प्रश्न १६१. यथाख्यात चारित्र तीन भव की अपेक्षा? उत्तर-जघन्य एक बार, उत्कृष्ट पांच बार । प्रश्न १६२. यथाख्यात चारित्र आराधक होने पर उसकी कौनसी गति है ? उत्तर-अनुत्तरविमान अथवा मोक्ष गति। प्रश्न १६३. एक जीव की अपेक्षा यथाख्यात चारित्र की जघन्य व उत्कृष्ट
स्थिति कितनी होती है ? उत्तर-जघन्य अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट कुछ कम करोड़ पूर्व। प्रश्न १६४. यथाख्यात चारित्र अनेक जीवों की अपेक्षा? उत्तर-शाश्वत क्योंकि महाविदेह क्षेत्र में यथाख्यात चारित्र सदा है। प्रश्न १६५. यथाख्यात चारित्र में गुणस्थान कितने पाते हैं?
१. भगवती २५/७/४६६ २. भगवती २५/७/४७६ ३. भगवती २५/७/५०२
४. भगवती २५/७/५४२ ५. भगवती २५/७/४८२
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