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साध्वाचार के सूत्र प्रश्न १७४. सूक्ष्मसंपराय चारित्र में उपयोग कितने पाये जाते हैं ? उत्तर-चार–प्रथम चार ज्ञान ।' प्रश्न १७५. सूक्ष्मसंपराय चारित्र में भाव कितने पाये जाते हैं ? उत्तर-पांच-औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक भाव। प्रश्न १७६. सूक्ष्मसंपराय चारित्र में आत्मा कितनी पायी जाती हैं ? उत्तर-आठ। प्रश्न १७७. सूक्ष्मसंपराय चारित्र में दण्डक कितने पाये जाते हैं ? उत्तर-एक-इक्कीसवां (मनुष्य पञ्चेन्द्रिय)। प्रश्न १७८. सूक्ष्मसंपराय चारित्र में वीर्य कौनसा पाया जाता है ? उत्तर-एक-पंडित वीर्य। प्रश्न १७६. सूक्ष्मसंपराय चारित्र में लब्धि कितनी पाई जाती है। उत्तर-पांच-दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य । प्रश्न १८०. सूक्ष्मसंपराय चारित्र में पक्ष कौन सा होता है ? उत्तर-एक-शुक्ल पक्ष । प्रश्न १८१. सूक्ष्मसंपराय चारित्र में दृष्टि कितनी पायी जाती है ? उत्तर-एक-सम्यक् दृष्टि। प्रश्न १८२. सूक्ष्मसंपराय चारित्र का साधक भवी या अभवी? उत्तर-भवी। प्रश्न १८३. यथाख्यातचारित्र किसे कहते हैं तथा उसके कितने प्रकार है ? उत्तर-सर्वथा कषाय का उदय न रहने से जो चारित्र बिल्कुल निरतिचार-दोष
रहित होता है, उसे यथाख्यातचारित्र कहते हैं। इसमें कथन के अनुसार पूर्णतया चारित्र का पालन किया जाता है अर्थात् कथनी-करनी समान होती है। ये साधु दो प्रकार के होते हैं। छद्मस्थ और केवली। छद्मस्थ के दो भेद-उपशांत मोह और क्षीण मोह। केवली के दो भेद-सयोगी केवली और अयोगी केवलो।
समवा।
१. भ. २५/७/४६८ २. २१ द्वार ३. २१ द्वार ४. २१ द्वार ५. २१ द्वार
६. २१द्वार ७. २१ द्वार ८. २१ द्वार ६. २१ द्वार १०. भ. २५/७/४५८
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