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साधु प्रकरण
प्रश्न १४२. परिहारविशुद्धि चारित्र में कितने समुद्घात होते हैं ? उत्तर - तीन समुद्घात - १. वेदना २. कषाय ३. मारणान्तिक । प्रश्न १४३. परिहारविशुद्धि चारित्र के साधक कितने पूर्व के ज्ञाता होते हैं ? उत्तर - जघन्य - नवम पूर्व तीसरी आचार वस्तु तथा उत्कृष्ट कुछ कम दस पूर्व के
ज्ञाता ।
प्रश्न १४४. परिहारविशुद्धि चारित्र का साधक आराधक होने पर कौन से देवलोक तक जा सकता है।
उत्तर - जघन्य - प्रथम देवलोक । उत्कृष्ट - आठवां देवलोक ।
प्रश्न १४५. परिहारविशुद्धि चारित्र एक भव की अपेक्षा कितनी बार प्राप्त हो सकता है ?
उत्तर - जघन्य एक बार और उत्कृष्ट तीन बार ।
प्रश्न १४६. परिहारविशुद्धि चारित्र तीन भव की अपेक्षा कितनी बार प्राप्त हो सकता है ?
उत्तर - जघन्य दो बार, उत्कृष्ट सात बार ।
प्रश्न १४७. परिहारविशुद्धि चारित्र की एक जीव की अपेक्षा जघन्य व उत्कृष्ट स्थिति कितनी होती है ?
उत्तर- जघन्य एक समय, उत्कृष्ट देश ऊन (२९ वर्ष कम ) करोड़ पूर्व ।
प्रश्न १४८. परिहारविशुद्धि चारित्र में गुणस्थान ?
उत्तर - दो - प्रमत्त संयत गुणस्थान, अप्रमत्त संयत गुणस्थान ।
प्रश्न १४६. परिहारविशुद्धि चारित्र में जीव के भेद कितने पाये जाते हैं ?
उत्तर - एक - चौदहवां (संज्ञी पञ्चेन्द्रिय का पर्याप्त ) । ४
उत्तर-
प्रश्न १५०. परिहारविशुद्धि चारित्र में योग कितने पाये जाते हैं ? र-नौ-चार मनो योग, चार वचन योग और औदारिक काय योग । ' प्रश्न १५१. परिहारविशुद्धि चारित्र में उपयोग कितने पाये जाते हैं ? उत्तर - सात - प्रथम चार ज्ञान, तीन दर्शन ।
प्रश्न १५२. परिहारविशुद्धि चारित्र में भाव कितने पाये जाते हैं ? र-पांच-उदय, उपशम, क्षायिक, क्षयोपशमिक, पारिणामिक भाव । ७
उत्तर
१. भगवती २५/७/५४२
२. भगवती २५/७/५८१
३. २१ द्वार
४. २१ द्वार
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५. २१ द्वार
६. २१ द्वार
७. २१ द्वार
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