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साधु प्रकरण
उत्तर-बहत्तर सौ बार। प्रश्न ४७. कषाय कुशील निर्ग्रन्थ एक साथ एक समय में उत्कृष्ट कितने
साधु हो सकते हैं? उत्तर-पृथक् सहस (दो हजार से नौ हजार तक) प्रश्न ४८. कषाय कुशील निर्ग्रन्थ पूर्व पर्याय की अपेक्षा कितने साधु हो
सकते हैं? उत्तर-पृथक् सहस्र करोड़। (दो हजार करोड़ से नौ हजार करोड़) प्रश्न ४६. कषाय कुशील निर्ग्रन्थ जन्म एवं चारित्र ग्रहण की अपेक्षा कितने
क्षेत्रों में होते हैं? उत्तर-पन्द्रह कर्मभूमि के क्षेत्रों में होते हैं, किन्तु देवादि द्वारा संहरण होने पर
अकर्मभूमि में भी। प्रश्न ५०. कषाय कुशील निर्ग्रन्थ भरत-ऐरावत में कब-कब होते हैं ? उत्तर-अवसर्पिणी काल में तीसरे-चौथे-पांचवें आरे में होते हैं। उत्सर्पिणी काल
में दूसरे-तीसरे-चौथे आरे में होते हैं। किन्तु महाविदेह क्षेत्र में संहरण होने
पर सभी आरों में मिल सकते हैं। प्रश्न ५१. कषाय कुशील निर्ग्रन्थ में कौनसा कल्प पाया जाता हैं? उत्तर-स्थविरकल्पिक, जिनकल्पिक और कल्पातीत।' प्रश्न ५२. कषाय कुशील निर्ग्रन्थ कितने पूर्व के धारक हो सकते हैं? उत्तर-चौदह पूर्व। प्रश्न ५३. निर्ग्रन्थ का क्या स्वरूप है? उत्तर-ग्रंथ का अर्थ यहां मोह है। जो साधु मोह से रहित हैं उन्हें निर्ग्रन्थ कहते
हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-उपशांतमोह वाले एवं क्षीण मोह वाले। दोनों
क्रमशः ग्यारहवें-बारहवें गुणस्थान के अधिकारी होते हैं। प्रश्न ५४. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थ कितने प्रकार के होते है? उत्तर-पांच प्रकार के होते हैं
१. प्रथम समय निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थ की कालस्थिति अन्तर्मुहर्त प्रमाण होती है। उस काल में प्रथम समय में वर्तमान निर्ग्रन्थ। २. अप्रथम समय निग्रंथ प्रथम समय के अतिरिक्त शेष काल में वर्तमान निर्ग्रन्थ।
१. भगवती २५/६/३०२
२. ठाणं ५/१८८
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