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साधु प्रकरण
२५ प्रश्न ३०. बकुशता निर्ग्रन्थ का प्रयोग आठ जन्मों की अपेक्षा कितनी बार
करते हैं? उत्तर-बहत्तर सौ बार। प्रश्न ३१. बकुश निर्ग्रन्थ एक समय में नए कितने बकुश बना सकते हैं? उत्तर-उत्कृष्ट नौ सौ तक। प्रश्न ३२. बकुश निर्ग्रन्थ की पूर्व पर्याय की अपेक्षा संख्या कितनी है? उत्तर-पृथक् शत करोड़। (दो सौ से नौ सौ करोड़) प्रश्न ३३. बकुश निर्ग्रन्थ किस क्षेत्र में शाश्वत रहते हैं ? उत्तर-महाविदेह क्षेत्र में। प्रश्न ३४. बकुश निर्ग्रन्थ भरत-ऐरावत में कब-कब होते हैं? उत्तर-अवसर्पिणी काल में तीसरे-चौथे-पांचवें आरे में होते हैं। उत्सर्पिणी काल
में दूसरे-तीसरे-चौथे आरे में होते हैं। प्रश्न ३५. बकुश निर्ग्रन्थ में कौनसा कल्प पाया जाता हैं? उत्तर-स्थविरकल्पिक और जिनकल्पिक।' प्रश्न ३६. बकुश कितने पूर्व के धारक हो सकते हैं? उत्तर-दस पूर्व। प्रश्न ३७. कुशील-निग्रंथ क्या स्वरूप है? उत्तर-मूल व उत्तर गुणों में दोष लगाने से तथा संज्वलन कषाय के उदय से
जिनका शील-चारित्र कुत्सित व दूषित हो गया है, वे साधु कुशील-निग्रंथ कहलाते हैं। इनके दो भेद हैं१. प्रतिसेवना-कुशील-चारित्र के प्रति अभिमुख होते हुए भी अजितेन्द्रियतावश महाव्रत आदि मूलगुणों तथा दस प्रत्याख्यान, पिण्डविशुद्धि समिति-भावना-तप-प्रतिमा आदि उत्तरगुणों की विराधना करने वाले मुनि प्रतिसेवनाकुशील कहलाते हैं।
२. कषाय-कुशील-संज्वलनकषाय के उदय से जिनका चारित्र दूषित हो
वे कषाय-कुशील कहलाते हैं। प्रश्न ३८. कुशील निर्ग्रन्थ कितने प्रकार के होते हैं? उत्तर-पांच प्रकार के होते है
१. ज्ञानकुशील-काल, विनय आदि ज्ञानाचार की प्रतिपालना नहीं करन वाला। १. भगवती २५/६/३०१
२. भगवती २५/६/२८१
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