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साधु प्रकरण
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प्रश्न १३. पुलाक लब्धि का प्रयोग एक जन्म की अपेक्षा कितनी बार करते
हैं ?
उत्तर - जघन्य एक बार, उत्कृष्ट तीन बार ।
प्रश्न १४. पुलाक लब्धि का प्रयोग तीन जन्मों की अपेक्षा कितनी बार करते हैं ?
उत्तर - जघन्य दो, उत्कृष्ट सात बार ।
प्रश्न १५. एक साथ पुलाक लब्धि का प्रयोग उत्कृष्ट कितने साधु कर सकते हैं?
उत्तर - उत्कृष्ट पृथक् शत (दो सौ से नौ सौ तक) साधु ।
प्रश्न १६. एक साथ पुलाक लब्धि का प्रयोग पूर्व काल की अपेक्षा कितने साधु कर सकते हैं?
उत्तर - पृथक् सहस्र (दो हजार से नौ हजार तक) साधु ।
प्रश्न १७. पुलाक लब्धि की स्थिति कितने समय की है ?
उत्तर - अंतर्मुहूर्त ।
प्रश्न १८. पुलाक लब्धि वाले किस क्षेत्र में शाश्वत रहते हैं ? उत्तर - महाविदेह क्षेत्र में ।
प्रश्न १६. पलाक लब्धि वाले भरत- - ऐरावत में कब-कब होते हैं ?
उत्तर -- अवसर्पिणी काल में तीसरे चौथे-पांचवें आरे में होते हैं। (पांचवें आरे में जन्मते नहीं) उत्सर्पिणी काल में दूसरे-तीसरे चौथे आरे में होते हैं। (दूसरे में जन्म लेते हैं, दीक्षा नहीं)
प्रश्न २०. पुलाक लब्धि में कौनसा कल्प पाया जाता है ?
उत्तर - केवल स्थविरकल्प । '
प्रश्न २१. बकुश - निर्ग्रथ का क्या स्वरूप है ? उत्तर- बकुश शब्द का अर्थ है - चित्र (चीते जैसा) वर्ण । शरीर एवं उपकरणों की शोभा-विभूषा करके उत्तरगुणों में दोष लगाने से जिनका चारित्र चित्रवर्ण-दोषों के दाग वाला हो गया है, वे बकुश-निर्ग्रथ कहलाते हैं । इनके दो भेद हैं१. शरीर - र- बकुशजो साधु शरीर की विभूषा के लिए हाथ-पैर मुंह आदि धोते हैं, आंख-कान-नाक दांत आदि से मैल दूर करते हैं एवं केश आदि को संवारते हैं वे शरीर- बकुश होते हैं।
१. भगवती २५ / ६ / ३००
२. प्रवचनसारोद्धार ६३ द्वार ७२४
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