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साध्वाचार के सूत्र संघ आदि की रक्षा के निमित्त पुलाकलब्धि से जो चक्रवर्ती की सेना को मृतप्राय कर डालते हैं, वे मुनि लब्धिपुलाक कहलाते हैं। प्रतिसेवनापुलाक' के पांच भेद हैं१. ज्ञानपुलाक-ये स्खलित-मिश्रित आदि ज्ञान के अतिचारों द्वारा ज्ञान की विराधना करते हैं। २. दर्शनपुलाक ये अन्यतीर्थी एवं तीर्थ परिचय आदि द्वारा दर्शनसम्यक्त्व में दोष लगा लेते हैं। ३. चारित्रपुलाक ये मूलगुण-उत्तरगुण में दोष लगा लेते हैं। ४. लिंगपुलाक-ये शास्त्रोक्त उपकरणों से अधिक उपकरण रखने वाला या बिना कारण अन्य लिंग धारण करने वाला।
५. यथासूक्ष्मपुलाक-ये प्रमादवश मन में अकल्पनीय वस्तु लेने का
विचार करने वाले होते हैं। प्रश्न ६. पुलाक निर्ग्रन्थ में ज्ञान कितने पाये जाते हैं? उत्तर-प्रथम तीन-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान। प्रश्न ७. पुलाक निर्ग्रन्थ में चारित्र कितने पाये जाते हैं? " उत्तर-प्रथम दो सामायिक चारित्र और छेदोपस्थापनीय चारित्र। प्रश्न ८. पुलाक निर्ग्रन्थ में शरीर कितने पाये जाते हैं? उत्तर-तीन-औदारिक, तैजस और कार्मण।' प्रश्न ६. पुलाक निर्ग्रन्थ में समुद्घात कितने पाये जाते हैं ? उत्तर-तीन वेदनीय, कषाय और मारणांतिक समुद्घात।' प्रश्न १०. पुलाक निर्ग्रन्थ आराधक अवस्था में काल धर्म प्राप्त करके कौन
से देवलोक तक जा सकते हैं? उत्तर-आठवें देवलोक तक।६।। प्रश्न ११. पुलाक निर्ग्रन्थ विराधक होने पर कौन सी गति में जाते हैं? उत्तर-(अण्णयरेसु) अन्य स्थानों में चारों गति में। प्रश्न १२. पुलाक निर्ग्रन्थ उत्कृष्ट कितने भवों में होता है? उत्तर-तीन भवों में। १. (क) स्थानां, ५/३/२७८
५. भगवती २५/६/४३५ (ख) भगवती २५/६/२७६
६. भगवती २५/६/३३७ २. भगवती २५/६/३१२
७. भगवती २५/६/३३६ ३. भगवती २५/६/३०४
८. भगवती २५/६/४१३ ४. भगवती २५/६/३२३
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