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प्रवचन-माता प्रकरण
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प्रश्न २१. एषणा को पभिाषित करते हुए उनके दस दोष कौन से हैं ? उत्तर-एषणा के दस दोष निम्नोक्त हैं
१. शंकित आहारादि में आधाकर्म आदि की शंका होने पर भी उसे
लेना। आहार ग्रहण करते समय एषणा के संबंध में होने वाले दोषों को एषणा या ग्रहणैषणा के दोष कहा जाता है इसका संबंध साधु और
गृहस्थ दोनों से हैं। २. म्रक्षित (असूझता)-दान देते समय आहार, चम्मच या देने वाले का हाथ आदि पृथ्वी-पानी-वनस्पति रूप किसी सचित्त वस्तु से छू जाने पर भी भिक्षा ले लेना। ३. निक्षिप्त-सचित्त द्रव्य पर रखी हुई भिक्षा लेना। ४. पिहित-सचित्त वस्तु से ढंकी हुई भिक्षा लेना। ५. संहत-सचित्त वस्तु के ऊपर पर से उठाकर दी हुई भिक्षा लेना। ६. दायक–दान देने के अयोग्य व्यक्तियों से आहार आदि अविधि से
लेना। अन्ध, पंगु, पागल, अतिवृद्ध, गर्भवती, बच्चे को दूध पिलाती हुई, दही बिलौती हुई, चने आदि भुनती हुई, आटा आदि पीसती हुई, रूई पीजती हुई तथा चरखा चलाती हुई स्त्री आदि-आदि ४० प्रकार के व्यक्ति दान देने के अयोग्य माने गये हैं। ७. उन्मिश्र-सचित्त-अचित्त मिला हुआ आहारादि लेना। ८. अपरिणत–पाकादि क्रिया द्वारा पूर्ण अचित्त न हुआ आहार आदि
लेना। ९. लिप्त-तत्काल का लीपे हुए अथवा कच्चे पानी से धोए हुए गीले
आंगन पर चलकर दिया जाने वाला आहारादि लेना। १०. छति–दान देते समय जिसके छीटे नीचे गिर रहे हों ऐसा आहारादि
लेना। प्रश्न २२. पिण्डैषणा पानैषणा से क्या तात्पर्य है? उत्तर-विधिपूर्वक पिंड (आहार) लेना पिंडैषणा एवं पानी लेना पानैषणा है। प्रश्न २३. आदान निक्षेप समिति से आप क्या समझते हैं ? उत्तर-वस्त्र, अमत्त, पाट, बाजोट आदि उपकरणों को संयमपूर्वक लेना या ___ रखना। १. प्रवचनसारोद्धार गा. ५६८, द्वार ६७ ३. उत्तरा. २४/१३-१४ २. प्रवचनसारोद्धार द्वार ६६
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